क्या बहन जी ने फ़ेल किया कांगे्रस का गेम प्लान

अब जबकि यह स्पष्ट हो गया है कि कांगे्रस महासचिव प्रिंयका गांधी बनारस से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ेंगी। जबकि इससे पहले इस बात की चर्चा जोर-शोर से थी कि प्रियंका गांधी ही कांगे्रस की तरफ से बनारस में प्रधानमंत्री को चुनौती देंगी। यहां तक कि खुद प्रिंयका गांधी भी इस बात के संकेत दे चुकीं थीं कि वे बनारस से प्रधानमंत्री के खिलाफ चुनाव लड़ने को तैयार हैं। और तो और कांगे्रस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी एक अंगे्रजी समाचार पत्र में इंटरव्यू में इशारों ही इशारों में यह कहा था कि प्रियंका गांधी बनारस से चुनाव लड़ सकती हैं। पर, ऐसा नहीं हुआ। हालांकि पहले यह खबर आई कि कांगे्रस ने बनारस के लिए प्रियंका गांधी का नाम तय कर दिया है, लेकिन अचानक यह समाचार आए कि प्रियंका गांधी बनारस से लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के वाराणसी से प्रधानमंत्री के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ने के पीछे कई तर्क दिए जा रहे हैं। पहले यह कहा गया कि राहुल गांधी ने यह कह कर मना कर दिया कि बड़े नेताओं के खिलाफ गांधी परिवार के न लड़ने की परंपरा नेहरू जी ने डाली थी और उसी का पालन किया जाना चाहिए। मगर क्या यही एक वजह है प्रियंका के वाराणसी से ना लड़ने की? चर्चा है कि बसपा प्रमुख मायावती का प्रियंका की वाराणसी से उम्मीदवारी पर राजी ना होना है, कांग्रेस के रणनीतिकार लगातार मायावती के सलाहकारों से संपर्क में थे कि प्रियंका गांधी के वाराणसी में चुनाव लड़ने की हालत में उन्हें प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ विपक्ष का संयुक्त उम्मीदवार घोषित किया जाए। कहा जाता है इस बारे में समाजवादी से बात भी हो गई थी और अखिलेश यादव ने अपनी मूक सहमति भी दे दी थी। मगर इतना जरूर इशारा किया था कि यह सब मायावती जी के हां करने के बाद ही संभव हो सकता है। जब मायावती से संर्पक किया गया तो उन्होंने बाजी ही पलट दी। मायावती ने प्रियंका को विपक्ष का संयुक्त उम्मीदवार बनाने से मना कर दिया। जानकारों का कहना है कि मायावती को लगा कि यदि प्रियंका बनारस से चुनाव लडती हैं तो इससे पूर्वांचल में कांग्रेस के पक्ष में एक माहौल बनेगा जिससे गठबंधन को नुकसान हो सकता है। मायावती यह जोखिम लेने के लिए तैयार नहीं थी वो पहले ही साफ कह चुकी हैं कि कांग्रेस भी भाजपा की तरह ही दुश्मन है। हालांकि मायावती को समझाने की कोशिश भी की गई मगर वह नहीं मानी। इसके बाद कांग्रेस की महासचिव और पूर्वांचल की प्रभारी प्रियंका को वाराणसी से वापस लौटना पड़ा। जहां तक मायावती का सवाल है तो कहा जाता है कि बहनजी ने ही पहले सपा-बसपा गठबंधन में कांगे्रस को शामिल नहीं किया। फिर अखिलेश यादव पर इस बात का दबाव डाला कि वे चुनाव प्रचार में कांगे्रस के खिलाफ हमलावर हों और अब प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी के खिलाफ बनारस से प्रियंका गांधी को समर्थन देने के लिए राजी न होना कहीं न कहीं इस बात का संकेत देता है कि मायावती प्रियंका गांधी से डरी हुईं हैं और वे नहीं चाहती हैं कि कांगे्रस उत्तर प्रदेश में मजबूत हो और प्रियंका गांधी एक बड़े नेता के रूप में उभरें। 
यदि बनारस के गठबंधन की उम्मीदवार को देखें तो दिलचस्प बातें सामने आती हैं। गठबंधन ने शालिनी यादव को टिकट दिया है। शालिनी यादव कांग्रेस के पूर्व राज्यसभा सांसद श्यामलाल यादव के परिवार से जुडी हैं। मेयर का चुनाव भी लड़कर हार चुकी हैं। यही नहीं शालिनी प्रियंका गांधी के गंगा यात्रा के दौरान उनके साथ ही थीं। मगर जिस दिन उन्होंने कांग्रेस छोड़ कर समाजवादी पार्टी का दामन थामा अखिलेश यादव ने उन्हें बनारस से गठबंधन का टिकट थमा दिया। बात ना बनते देख कांग्रेस ने फिर अजय राय को वाराणसी से उम्मीदवार बनाया। सवाल इस बात का था कि जिस तरह से सपा-बसपा ने रायबरेली और अमेठी में अपने प्रत्याशी न उतारने का फैसला किया है अगर प्रियंका वाराणसी से चुनाव लड़ती हैं तो क्या उनके लिए भी रास्ता खाली कर दिया जाएगा, लेकिन इस पर बीएसपी सुप्रीमो मायावती नहीं मानीं। कुछ भी हो अगर प्रियंका गांधी बनारस से चुनाव लड़ती तो निश्चित रुप से पूर्वांचल में कांग्रेस को अपनी ज़मीन मज़बूत करने का मौका तो मिल ही जाता जिससे आस पास की सीटों का गणित गड़बडा सकता था