देश मे कई और निर्भया


वे आपके घर में हो सकती हैं और आपके शहर में भी। वे आपके परिवार का हिस्सा हो सकती हैं और समाज का भी। वे हमारी ही दुनिया का हिस्सा हैं और हम उनका हिस्सा। दरअसल, उन्होंने ही इस दुनिया को बनाया है, हमारे लिए और हम उन्हीं की बनाई दुनिया में जी रहे हैं।


 

हम उनके साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं? जो पाश्विक हो, बर्बर हो और घिनौना भी। जबकि वे हमारी ही  दुनिया का हिस्सा हैं। किसी की मां है, बहन है, बेटी है या फिर पत्नी या प्रेमिका। उन्हें मारा जाना देह और आत्मा दाेनों की हत्या है। 

लड़कियों की इस तरह मरने की ये कहानियां हमें कब शर्मिंदा करेंगी? आखिर समाज के रूप में हम कब सभ्य और जागरूक होंगे?    

लड़कियां जो घर से बाहर निकलीं, वह इसी भरोसे पर निकली थीं कि लौटकर घर आएंगी। महफूज और इज्जत के साथ। लेकिन 28 नवंबर 2019 की रात एक निर्भया अपने घर कभी वापस नहीं लौटी। "मुझे डर लग रहा है" की आवाज के साथ एक फोन कॉल घर पहुंचा और उसके बाद वह डर पूरे समाज का सच बन गया।

26 साल की एक लड़की का घर से निकलना इस देश के किसी भी शहर के किसी भी हिस्से में एक सामान्य बात होगी, लेकिन उनका सुरक्षित लौटना उतना ही असामान्य है।

लौटती हुई लड़कियां सैकड़ों बार इस देश में तार-तार घर पहुंचीं हैं या फिर अपनी लाश के साथ। तेलंगाना के शादनगर में एक लड़की लाश के रूप में ही घर पहुंची। उसका पहुंचना इस बात की आश्वस्ति है कि इस व्यवस्था और समाज की तस्वीर आज भी ठीक वैसी ही है, जैसी 16 दिसंबर 2013 में निर्भया के समय थ


तेलंगाना का शादनगर इस देश में दिल्ली की तरह ही एक दर्दनाक इतिहास के रूप में कैद हुआ है। हम शादनगर की लड़की और दिल्ली की निर्भया को इस देश की उन तमाम लड़कियों की आखिरी आवाज की तरह याद रखेंगे, जहां कभी न लौट पाने का डर हमेशा मौजूद रहेगा। न्याय की उम्मीद में, उम्मीद है कि वह जल्द मिलेगा।