साड़ी से जुड़ी रोचक बातें क्यों खास मौके पर साड़ी पहनना पसंद करती हैं भारतीय महिलाएं?




 

साड़ी भारतीय संस्कृति से जुड़ा एक बेहद खास परिधान है। भारत समेत श्रीलंका, नेपाल, बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे एशियाई देशों में महिलाओं द्वारा साड़ी पहनने का प्रचलन है। साड़ी की लोकप्रियता आज इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि बड़े फैशन डिजाइनर भी विदेशों में साड़ी स्पेशल मॉडलिंग ईवेंट करवा रहे हैं। साड़ी एक ऐसा परिधान है जिसे पहनकर आप एक ही समय में सेंसेशनल और पारंपरिक दोनों लग सकती हैं। अब चाहे विदेशी ससुराल में प्रियंका चोपड़ा का साड़ी पहनना हो या किसी भी लड़की की खास दिन के लिए साड़ी पहला पसंद हो। ये बात साबित करती है कि साड़ी से बेहतर परिधान कुछ नहीं है। लेकिन साड़ी, देखने में जितनी अच्छी लगती है, उसे पहनना उतना ही मुश्किल है। अगर ठीक ढ़ंग से साड़ी को न पहना जाए तो ये आपके लुक को बिगाड़ सकती है। आइए आपको साड़ी से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों के बारे में बताते हैं।

 




साड़ी दुनिया की सबसे लंबे और पुराने परिधानों में से एक है। यह आदिकाल से भारतीयता की पहचान भी है। इसकी लंबाई सभी परिधानों से ज्यादा है। साड़ी के बॉर्डर और पल्लू पर थोड़ी बहुत कढ़ाई (एंब्रॉयडरी) देखी जा सकती है। पल्लू पर भारी-भरकम कारीगरी होने की वजह से महिलाएं इसे बदन पर आसानी से लपेट पाती हैं।  वैसे तो बाजार में कॉटन, सिल्क और सिंथेटिक फाइबर से बनी साड़ियां ही लोगों की पहली पसंद होती हैं, लेकिन 700 रुपये से कम में मिलने वाली ज्यादातर साड़ियां पॉलिस्टर की होती हैं, जिसे शरीर के लिए सही नहीं माना जाता।

 




 

भले ही आज गाउन, स्कर्ट और लहंगा पार्टियों की शान बढ़ा रहे हैं, लेकिन इस बात को बिल्कुल नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि साड़ी एक बेहद खास परिधान है। पार्टी में इसे पहनने वाली महिला ज्यादा नोटिस की जाती हैं। उनसे जुड़े खास लम्हें भी लोगों को लंबे वक्त तक याद रहते हैं।

 



साड़ी बांधने की कला को ड्रेपिंग कहा जाता है। आपने महिलाओं को सिर्फ एक तरह से साड़ी बांधते देखा होगा, जबकि साड़ी बांधने के 100 से भी ज्यादा तरीके हैं। आमतौर साड़ी बांधने का जो तरीका महिलाओं द्वारा अपनाया जाता है, उसे निवी ड्रेप कहते हैं।

 




 

 

इसमें कोई दो राय नहीं कि पश्चिमी सभ्यता की वजह से न सिर्फ हमारा खान-पान बल्कि पहनने ओढ़ने का तरीका भी बदला है। आज महिलाएं शॉपिंग करते वक्त जींस, स्कर्ट या पैंट पहनना ज्यादा पसंद करने लगी हैं। जबकि साड़ियों को किसी विशेष महोत्सव के लिए अलमारी में सजाकर रख दिया है। इससे न सिर्फ देश में कपड़ा उद्योग बल्कि बुनकरों को भी काफी नुकसान हुआ है।
 



वैसे तो एक साड़ी की औसत लंबाई 3.5 गज से 9 गज तक होती है, लेकिन इसे बांधने के विभिन्न तरीकों पर भी निर्भर करता है कि इसके एक टुकड़े की लंबाई कितनी होनी चाहिए. इसलिए यह 9 गज से ज्यादा भी हो सकती है।

 




यह बात सही है कि ज्यादातर महिलाओं को साड़ी पहनना रॉकेट लॉन्च करने से भी मुश्किल काम लगता है। जबकि ऐसी कई महिलाएं हैं जिनके वॉर्डरॉब में साड़ी के अलावा कोई दूसरा विशेष परिधान नजर ही नहीं आता। वे रोजाना सिर्फ साड़ी कैरी करना ही पसंद करती हैं। एक सर्वे में पता चला कि भारत में करीब 95 प्रतिशत महिलाएं किसी दूसरी महिला से साड़ी पहनना ज्यादा बेहतर विकल्प समझती हैं।



ब्रिटिशकाल से पहले भारत में बिना ब्लाउज और पेटीकोट के ही साड़ी पहनी जाती थी। लेकिन बाद में एक युग ऐसा भी आया जिसमें महिलाओं ने पहली बार साड़ी के साथ ब्लाउज और पेटीकोट पहनना शुरू किया। मौजूदा दौर में इन दो चीजों के बिना साड़ी पहनना मुश्किल है, लेकिन सही मायनों में इनके बिना भी साड़ी पहनी जा सकती है।