भारत का गौरव, इस बेटी ने पैरा ओलंपिक में दिलाया देश को मेडल


महिलाओं को शक्ति का प्रतीक यूं ही नहीं कहा जाता है। अपने कारनामों से वो हमेशा ही साबित कर देती हैं कि वो क्यों भगवान की बनाई एक अनमोल रचना हैं। आज शक्ति में हम एक ऐसी ही शख्सियत के बारे में बताएंगे जिन्होंने न केवल अपनी शारीरिक अक्षमताओं से लड़ा बल्कि अपने काम से भारत का गौरव भी बनीं। तो चलिए जानें ऐसी ही महान खिलाड़ी दीपा मलिक के बारे में.


शारीरिक अक्षमताओं को दरकिनार कर दीपा मलिक ने खेल के माध्यम से देश को उस मुकाम पर पहुंचा दिया जिसके लिए आज पूरा भारत उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखता है। गुुरुग्राम में रहने वाली पैरालंपियन दीपा मलिक की इस सफलता के पीछे बड़ा संघर्ष छिपा है। जिसमें उन्होंने साबित कर दिया कि अगर व्यक्ति दिल में अगर कुछ करने की ठान लें तो कोई भी बाधा उसे रोक नहीं सकती।




गुरुग्राम में रहने वाली पैरालंपियन दीपा मलिक ने अपने संघर्ष को बयां करते हुए बताया कि 1999 की बात है। जब देश में कारगिल युद्ध के आसार बने हुए थे। पति विक्रम सिंह सेना में कर्नल होने के कारण व्यस्त थे। उस वक्त 30 वर्ष की उम्र में मुझे अचानक कमर के निचले भाग में मुझे लकवा मार गया। इससे परिवार के लोग चिंतित हो गए, लेकिन मैंने परिवार के लोगों को कहा कि कोई चिंता की बात नहीं है, मुझे हल्का फुल्का दर्द है ठीक हो जाएगा। 




कारगिल युद्ध के बाद पति के आने के बाद मेरी सर्जरी हुई। तीन स्पाइनल ट्यूमर सर्जरी में कंधों में 183 टांके लगे। मैं उस वक्त थोड़ी मायूस हो गई लेकिन मेरे पति ने मेरी हौसला अफजाई की। धीरे-धीरे समय आगे बढ़ता गया लेकिन मैं शारीरिक तौर पर सामान्य नहीं हो पाई। मैंने भी ठान लिया कि मुझे भले ही व्हील चेयर पर रहना पड़े लेकिन मैं हार नहीं मानूंगी। उसके बाद मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।




मूलरूप से सोनीपत के भैंसवाल गांव से ताल्लुक रखने वाली दीपा ने बताया कि मैंने पैरा खेलों में तैयारी करनी शुरू कर दी। 18 साल की मेहनत के बाद रियो पैरालंपिक-2017 में महिला वर्ग में देश के लिए प्रतिनिधित्व करते हुए रजत पदक जीतकर इतिहास रच दिया। एशियाड समेत कई अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता में देश के लिए मेडल जीतने की बदौलत दीपा को देश के सर्वश्रेष्ठ अर्जुन अवॉर्ड, पद्श्री सम्मान से नवाजा जा चुका है। 




बकौल दो बेटियों की मां दीपा ने बताया कि दिव्यांगों के लिए देश में खेलों में अलग मुकाम दिलाना मेरा लक्ष्य था, आज जब मुझे देखकर लोग मेरे नाम से मुझे आवाज देते हैं तो खुशी होती है। उन्होंने कहा कि शारीरिक अक्षमता कोई कमी नहीं है बस, आपको अपना दिल मजबूत करने की जरूरत है। गुरुग्राम खेल एवं युवा कार्यक्रम विभाग में बतौर पैरा कोच दीपा ने बताया कि आज के समय में लिंगभेद खत्म हो गया है, बस महिलाओं को अपने दिल से इस बात को निकालने की जरूरत है। आपकी मेहनत आपको एक नया मुकाम दिलाएगी।