भारत ने यूरोपीय संसद में सीएए के खिलाफ प्रस्ताव पर जताई आपत्ति


संशोधित नागरिकता कानून पर देश भर में हो रहे हंगामे, विरोध-प्रदर्शनों के बाद अब यह मामला यूरोपीय संसद में पहुंच गया है। सीएए के खिलाफ पेश किए गए इस प्रस्ताव पर यूरोपीय संसद बहस और मतदान करेगी। भारत ने इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए इसे देश का आंतरिक मामला बताया है। भारत ने कहा है कि यूरोपीय संसद को ऐसी कार्रवाई नहीं करनी चाहिए जिससे लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई विधायिका के अधिकारों पर सवाल उठें।


आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि नया नागरिकता कानून पूरी तरह भारत का आंतरिक मामला है। अधिकारी ने कहा, 'हम उम्मीद करते हैं कि यूरोपीय यूनियन में इस प्रस्ताव को लाने वाले और इसका समर्थन करने वाले लोग सभी तथ्यों को समझने के लिए भारत से संपर्क करेंगे। ईयू संसद को ऐसी कार्रवाई नहीं करनी चाहिए जिससे लोकतांत्रिक तरीके से चुनी विधायिका के अधिकारों पर सवाल खड़े हों।'

प्रस्ताव में भारत से अपील की गई है कि सीएए के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों के साथ रचनात्मक वार्ता करने और भेदभावपूर्ण कानून को निरस्त करने की मांग पर विचार करे। इसमें कहा गया है, ‘सीएए भारत में नागरिकता तय करने के तरीके में खतरनाक बदलाव करेगा। इससे नागरिकता विहीन लोगों के संबंध में बड़ा संकट विश्व में पैदा हो सकता है और यह बड़ी मानव पीड़ा का कारण बन सकता है।’

यूरोपीय संसद में इस प्रस्ताव पर बुधवार को बहस होगी और इसके अगले दिन यानी गुरुवार को मतदान किया जाएगा। प्रस्ताव में भारत से अपील की गई है कि नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों से भी बातचीत की जाए। भारत इसे आंतरिक मामला बताता रहा है लेकिन कई देश इस कानून को मानवाधिकारों से जोड़कर देख रहे हैं और सवाल पूछ रहे हैं। विदेशी मीडिया का रुख भी लगातार आक्रामक बना हुआ है।

बता दें कि इस सप्ताह की शुरुआत में यूरोपियन यूनाइटेड लेफ्ट/नॉर्डिक ग्रीन लेफ्ट समूह ने भारत के संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ प्रस्ताव पेश किया था। प्रस्ताव में संयुक्त राष्ट्र के घोषणापत्र, मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा (यूडीएचआर) के अनुच्छेद 15 के अलावा 2015 में हस्ताक्षरित किए गए भारत-यूरोपीय संघ सामरिक भागीदारी संयुक्त कार्य योजना व मानवाधिकारों पर यूरोपीय संघ-भारत विषयक संवाद का उल्लेख किया गया है। 

बता दें कि सीएए भारत में पिछले साल दिसंबर में लागू किया गया था जिसे लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। भारत सरकार का कहना है कि नया कानून किसी की नागरिकता नहीं छीनता है बल्कि इसे पड़ोसी देशों में उत्पीड़न का शिकार हुए अल्पसंख्यकों की रक्षा करने और उन्हें नागरिकता देने के लिए लाया गया है।