जेएनयू में उपजे विवाद पर केंद्र सरकार और कुलपति अब आर-पार की स्थिति में हैं। छात्र और शिक्षक कुलपति प्रो. एम जगदीश कुमार के इस्तीफे पर अड़े हुए हैं। जबकि सरकार कुलपति प्रो. कुमार को सीधे हटाने के मूड में नहीं है। लेकिन चौतरफा दबाव के चलते प्रो.कुमार खुद इस्तीफा दे सकते हैं ।
क्योंकि जेएनयू विवाद के चलते सरकार को आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। चार घंटों तक कैंपस में अराजकता का माहौल बना रहना और चार दिनों तक मीडिया का सामना न करना उनके खिलाफ गए हैं।
सूत्रों के मुताबिक, केंद्र सरकार छात्रों और शिक्षकों की मांग पर कुलपति को नहीं हटाना चाहती है। क्योंकि इससे विश्वविद्यालयों में अराजकता के माहौल को बढ़ावा मिलेगा। जबकि उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रशासन और छात्रों व शिक्षकों के बीच दिक्कतें चलती रहती हैं।
यदि जेएनयू कुलपति को सरकार पद से हटाने का फैसला लेती है तो इसके बाद सभी विश्वविद्यालयों में ऐसे ही मांग उठती रहेगी। वहीं, सरकार का फैसला है कि किसी भी विश्वविद्यालय या उच्च शिक्षण संस्थान में दखल न दिया जाए। क्योंकि सभी स्वायत्त संस्थाएं हैं और उन्हें अपने ढंग से कामकाज करने की आजादी होनी चाहिए।
हालांकि जेएनयू में हॉस्टल फीस बढ़ोतरी मामले पर विश्वविद्यालय प्रशासन और छात्रों व शिक्षकों के बीच दूरियों के चलते विवाद बढ़ गया। हॉस्टल फीस बढ़ोतरी का आंदोलन जेएनयू इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा आंदोलन है। कैंपस 75 दिनों से आग उगल रहा है।ऐसे में कैंपस को शांत करवाना भी जरूरी है।
सरकार कोशिश कर ही रही थी कि रविवार को नकाबपोश भीड़ की हिंसा ने दोबारा सारे रास्ते बंद कर दिए है। जेएनयू हिंसा के बाद राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय शिक्षण संस्थान ने विश्वविद्यालय छात्रों को अपना समर्थन दिया है। हर ओर से कुलपति को पद से हटाने की मांग है। इसी के चलते अब सरकार दुविधा में है कि कौन सा रास्ता बीच का निकालकर कैंपस शांत करवाया जाए।
बीजेपी के अंदर से भी उठी आवाज
उन्होंने हैरानगी जताते हुए लिखा है कि सरकार के निर्देश के बाद भी कुलपति ने छात्रों और शिक्षकों से बात नहीं की।जबकि उन्हें कई बार फीस बढ़ोतरी मामले पर समस्या का समाधान निकालने का निर्देश दिया गया था। मेरे ख्याल से ऐसे व्यक्ति को कुलपति बनाए नहीं रखा जाना चाहिए।