ट्रेनों से घसीटकर यात्रियों को मारा सिख विरोधी दंगे में, SIT रिपोर्ट में दावा


1984 के सिख विरोधी दंगा मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल ने अपनी रिपोर्ट में उस वक्त की पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं। रिपोर्ट में उस दौरान यात्रियों को दिल्ली में रेलवे स्टेशनों पर ट्रेनों से बाहर निकालकर मारा गया लेकिन पुलिस ने मौके से किसी को नहीं बचाया। पुलिस की दलील थी कि उनकी संख्या बेहद कम थी। उधर, केंद्र ने कहा कि दिल्ली पुलिस की भूमिका पर कमिटी की रिपोर्ट को हम स्वीकार करते हैं और इसके अनुसार कार्रवाई भी करेंगे


दिल्ली हाई कोर्ट के रिटायर जज एस एन ढींगरा की अध्यक्षता वाली एसआईटी की रिपोर्ट में कहा गया कि ट्रेन में सफर कर रहे सिख यात्रियों की ट्रेन और रेलवे स्टेशनों पर हमला करने वाले लोगों द्वारा हत्या किए जाने के पांच मामले थे। एसआईटी ने कुल 186 मामलों की जांच की थी। रिपोर्ट में कहा गया कि यह घटनाएं 1 और 2 नवंबर 1984 को दिल्ली के पांच रेलवे स्टेशनों- नांगलोई, किशनगंज, दयाबस्ती, शाहदरा और तुगलकाबाद में हुई।

रिपोर्ट में कहा गया, 'इन सभी पांच मामलों में पुलिस को दंगाइयों द्वारा ट्रेन को रोके जाने तथा सिख यात्रियों को निशाना बनाए जाने के बारे में सूचना दी गई। सिख यात्रियों को ट्रेन से बाहर निकालकर पीटा गया और जला दिया गया। शव प्लेटफॉर्म और रेलवे लाइन पर बिखरे पड़े थे।' इसमें कहा गया, 'पुलिस ने किसी भी दंगाई को मौके से गिरफ्तार नहीं किया। किसी को गिरफ्तार नहीं करने के पीछे जो कारण दर्शाया गया वह यह था कि पुलिसकर्मियों की संख्या बेहद कम थी और दंगाई पुलिस को देखकर भाग खड़े हुए।'

रिपोर्ट के मुताबिक, फाइलों को देखने से खुलासा हुआ कि पुलिस ने घटनावार या अपराधवार एफआईआर दर्ज नहीं की और इसके बजाए कई शिकायतों को एक एफआईआर में मिला दिया गया। इसमें कहा गया कि ऐसी ही एक एफआईआर में 498 घटनाओं को शामिल किया गया था और इनकी जांच के लिए सिर्फ एक अधिकारी को नियुक्त किया गया था।