विदेश मंत्रालय को 50 साल के सबसे बड़े आंतरिक बदलाव में पिरामिड सिस्टम की जगह वर्टिकल्स बनाए गए


विदेश मंत्रालय करीब-करीब आधी सदी की सबसे बड़ी पुनर्गठन प्रक्रिया से गुजर रहा है। इसके साथ ही यह आरंभ से अंत तक सांगठनिक सुधारों को लागू करने वाला केंद्र सरकार का पहला मंत्रालय बन गया है। विदेश मंत्रालय का प्रबंधन और कार्य संरचना आधुनिक प्रथाओं अनुकूल नहीं थी, इसलिए देश की विदेश नीति की मांगों को पूरा करने में असक्षम साबित हो रही थी। नए जमाने की विदेश नीति ज्यादा पेचीदा और विविधतापूर्ण हो गई है।

बदलावों को परखने का लंबा वक्त

हर्ष श्रृंगला नए विदेश सचिव का पदभार संभाल चुके हैं। ऐसे में विदेश मंत्री एस. जयशंकर मंत्रालय के सांगठनिक ढांचे में बदलाव की योजनाओं को लागू करने में जुट गए हैं। इन बदलावों को लेकर श्रृगंला और जयशंकर के विचार मिलने के कारण काम आसान हो रहा है। चूंकि अभी सरकार का लंबा कार्यकाल बचा है, इसलिए बदलावों को देखने-परखने और मांग के अनुरूप फिर से बदलाव करने का पर्याप्त समय मिल जाएगा।


बन रहे अलग-अलग वर्टिकल्स
बदलाव के बाद विदेश मंत्रालय का नया ढांचा कॉर्पोरेट जैसा हो जाएगा। इसमें आर्थिक और व्यापारिक कूटनीति, विकास भागीदारी, वाणिज्यिक दूतावास (कॉन्सुलर), तकनीकी जैसे उभरते क्षेत्रों आदि वर्टिकल्स बनेंगे। हरेक वर्टिकल के प्रमुख अतिरिक्त सचिव स्तर का अधिकारी होगा। इसका मकसद मौजूदा पीरामिड जैसे ढांचे को तोड़ना और विदेश नीति के रुटीन कार्यों को रणनीतिक परियोजनाओं से अलग करना है। इससे सचिवों को बड़े मुद्दों को अपने स्तर से संभालने का मौका मिल जाएगा।

हो चुकी शुरुआत
पहले चरण में गुरुवार को विदेश मंत्रालय के कुछ वर्टिकल्स बना भी लिए गए। भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) के तत्कालीन प्रमुख अखिलेश मिश्रा चारों विकास भागीदारी प्रभागों का कामकाज देखेंगे। ये प्रभाग विदेश में भारतीय सहायता एवं विकास परियोजनाओं की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण हैं, खासकर पड़ोसी देशों और अफ्रीका में।

वहीं, दिनेश पटनायक को आईसीसीआर का प्रमुख बनाया गया है। वह सांस्कृतिक कूटनीति का पूरा कामकाज देखेंगे। पी. हैरिश आर्थिक कूटनीतिक पहलों पर नजर रखेंगे। वह बहुपक्षीय आर्थिक कूटनीति के प्रमुख होंगे। नगमा मल्लिक के अंदर तीन अफ्रीकी डिविजनों की रिपोर्टिंग दी गई है। वहीं, विक्रम दुरईस्वामी सभी बहुपक्षीय कार्यों के प्रमुख होंगे। विदेशों में राजनीतिक, आर्थिक सम्मेलनों एवं शिखर सम्मेलनों का जिम्मा इनका होगा। विदेश मंत्रालय को भविष्य में कॉन्सुलर इशूज, उभरती रणनीतिक तकनीक, साइबर आदि क्षेत्रों पर काम करना होगा।

पूरी होगी वक्त की मांग
मौजूदा सिस्टम में संयुक्त सचिवों और चारों सचिवों पर काम का बहुत बड़ा बोझ हुआ करता था जिससे मंत्रालय देश की विदेश नीति के मोर्चे पर ही उलझा रहता था और उसके पास रणनीतिक योजनाएं बनाने और मांग के मुताबिक बड़े कदम उठाने आदि का मौका नहीं होता था। अब नए सिस्टम में इन कठिनाइयों को दूर करते हुए वक्त की मांगों को पूरा किया जाएगा।