आज एक बार फिर से बीजेपी के हो जाएंगे बाबूलाल मरांडी


 


झारंखड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी सोमवार लगभग 14 साल बाद बीजेपी में वापसी करने जा रहे हैं. बाबूलाल की घर वापसी झारखंड में बीजेपी की सियासत में आमूल-चूल बदलाव करने जा रही है. झारखंड में एक अदद आदिवासी चेहरे की तलाश कर रही बीजेपी को बाबूलाल मरांडी के रूप में एक ऐसा नेता मिल गया है जिसकी जड़ें संघ से जुड़ी हैं और जो झारखंड की राजनीति का जाना-माना नाम है.


रांची में बीजेपी का मेगा शो


बाबूलाल की घर वापसी को लेकर रांची में एक मेगा शो रखा गया है. इस कार्यक्रम में गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी उपाध्यक्ष ओम माथुर मौजूद रहेंगे. इन दोनों दिग्गजों की मौजूदगी में बाबूलाल कंघी (जेवीएम का चुनाव चिह्न) से कमल की ओर प्रस्थान करेंगे. जेवीएम अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी अपनी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा के बीजेपी में विलय की घोषणा पहले ही कर चुके हैं. बाबूलाल मरांडी आज औपचारिक रूप से एक बार फिर से उसी दल में आ जाएंगे जहां से उन्होंने राजनीति का ककहरा सीखा था.


2006 में बीजेपी से अलग हुए थे बाबूलाल


झारखंड गठन के साथ ही 15 नवंबर 2000 को बाबूलाल मरांडी राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने थे. राज्य के मुखिया के रूप में ये उनकी पहली पारी थी, बाबूलाल को यहां जबर्दस्त गुटबाजी का सामना करना पड़ा. मात्र  28 महीने बाद उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी थी. बाबूलाल मरांडी के बाद भारतीय जनता पार्टी के अर्जुन मुंडा प्रदेश के दूसरे मुख्यमंत्री बने थे. इस दौरान दोनों नेताओं के बीच गुटबाजी की खबरें भी आती रही. इस दौरान झारखंड में ट्राइबल बनाम गैर ट्राइबल की आदिवासी लड़ाई चलती रही.





2004 में जब बीजेपी की केंद्र की सत्ता से बाहर हो गई तो बाबूलाल मरांडी ने कोडरमा लोकसभा सीट से चुनाव जीता. बाबूलाल मरांडी का राज्य नेतृत्व से विवाद बढ़ता गया. कई बार उन्होंने अपनी ही पार्टी की सरकार की आलोचना की. 2006 आते-आते बाबूलाल बीजेपी में उबने लगे. उन्होंने  कोडरमा लोकसभा सीट और बीजेपी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और झारखंड विकास मोर्चा का गठन किया. बीजेपी के 5 विधायक भी उनके साथ उनकी पार्टी में शामिल हुए.


इसके बाद बाबूलाल मरांडी कोडरमा लोकसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े और जीत हासिल की. 2009 लोकसभा चुनाव में वे जेवीएम के टिकट पर कोडरमा से चुनाव लड़े और एक बार फिर जीते.


 


राज्य की राजनीति में नहीं जमा सके धाक


झारखंड के पहले सीएम बनने वाले बाबूलाल मरांडी राज्य की सियासत में अपनी धाक नहीं जमा पाए. झारखंड का किंगमेकर बनने का सपना लिए बाबूलाल इसे धरातल पर नहीं उतार पाए. झाविमो के गठन के बाद दो बार पार्टी का प्रदर्शन निर्णायक रहा. 2009 में पहली बार 11 विधायकों के साथ राज्य में मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई.


2014 में दो सीटों से हारे


 2014 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने एकला चलो की राह अपनाई और उनके 8 विधायक जीते. हालांकि मोदी लहर और राज्य में बीजेपी की सरकार बनने के बाद उनके 6 विधायक भाजपा में शामिल हो गए. 2014 का विधानसभा चुनाव बाबूलाल के लिए दुस्वपन जैसा रहा. इस इलेक्शन में वे दो विधानसभा सीट राजधनवार और गिरिडीह से किस्मत आजमा रहे थे, लेकिन वे दोनों ही सीटों से हारे.


बाबूलाल नहीं कर पाए कमाल


2019 के विधानसभा चुनाव में बाबूलाल की पार्टी सभी 81 सीटों पर चुनाव लड़ी, लेकिन बाबूलाल इस बार भी कमाल नहीं कर पाए. इस चुनाव में खुद बाबूलाल और दो दूसरे विधायक प्रदीप यादव और बंधु तिर्की चुनाव जीते. इस चुनाव में झारखंड विकास मोर्चा को 5.45% वोट मिले. बीजेपी के साथ विलय की घोषणा से उनके दो विधायकों ने बगावत कर दिया है. बाबूलाल ने उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया है.


बीजेपी की हार के साथ खुला घर वापसी का रास्ता


2019 का विधानसभा चुनाव मरांडी के लिए कई संयोग लेकर आया. इस चुनाव में बीजेपी बुरी तरह तो हारी ही. जिस गैर आदिवासी चेहरे के दम पर बीजेपी चुनाव लड़ी वो अपनी सीट भी नहीं बचा पाए. पांच साल तक सीएम रहने के बाद रघुवर दास की हार बीजेपी को अखर गई. बीजेपी को अब ऐसे नेता की तलाश थी जो आदिवासी भी हो जिसकी राज्य की राजनीति में स्वीकार्यता भी हो. बीजेपी की तलाश अपने ही पुराने सिपहसालार बाबूलाल मंराडी पर आकर खत्म हुई. इसी के साथ झारखंड की राजनीति का नया अध्याय शुरू हो रहा है.