कतर के दोहा में शनिवार को अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौते पर मुहर लग गई। दोनों पक्षों के हस्ताक्षर से हुए इस समझौते के तहत अमेरिका अगले 14 महीने में अफगानिस्तान से सभी बलों को वापस बुलाएगा। इस करार के दौरान भारत समेत दुनियाभर के 30 देशों के प्रतिनिधि मौजूद रहे। हालांकि अमेरिका और तालिबान के बीच हुआ यह समझौता भारत की मुश्किलें बढ़ा सकता है।
22 फरवरी से शुरू हुआ था आंशिक संघर्ष विराम
अफगानिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा समिति के प्रवक्ता जावेद फैसल ने बीते सप्ताह कहा था कि अफगान सुरक्षा बलों और अमेरिका व तालिबान के बीच हिंसा में कमी जल्द ही हो जाएगी। उन्होंने शनिवार 22 फरवरी से हिंसा में कमी आने का दावा करते हुए कहा था कि यह कमी एक सप्ताह तक जारी रहेगी। हालांकि उन्होंने माना था कि हिंसा के पूरी तरह खत्म होने में समय लगेगा।
क्या है भारत की मुश्किलें बढ़ने की वजह
भू राजनैतिक रूप से अहम अफगानिस्तान में तालिबान के कदम पसारने से वहां की नवनिर्वाचित सरकार को खतरा होगा और भारत की कई विकास परियोजनाएं प्रभावित होंगी। इसके अलावा भी पश्चिम एशिया में पांव पसारने की तैयारी में लगी मोदी सरकार को बड़ा नुकसान होगा। यही वजह है कि अमेरिका और तालिबान के बीच सफल शांति वार्ता से भारत की मुश्किलें बढ़ सकती है।
तालिबान-अमेरिका शांति वार्ता पाकिस्तान के लिए फायदे का सौदा
तालिबान के साथ अमेरिका की शांति वार्ता और समझौता पाकिस्तान के लिए फायदे का सौदा है। इसलिए इन दोनों ध्रुवों के बीच पाकिस्तानी सरकार और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई बिचौलिए का काम कर रही थी। अफगानिस्तान से अमेरिकी फौजों के वापस जाते ही पाकिस्तान तालिबान की मदद से कश्मीर में आतंकी घटनाओं को अंजाम दे सकता है। यह भी भारत की मुश्किल बढ़ाने वाली बात ही है।
तालिबान को अमेरिका के साथ बातचीत की मेज पर पाकिस्तान ही लेकर आया, क्योंकि वह अपने पड़ोस से अमेरिकी फौजों की जल्द वापसी चाहता है। कतर की राजधानी दोहा में अमेरिका-तालिबान की वार्ता में शामिल होने के लिए ही पाकिस्तान ने कुछ महीने पहले तालिबान के उप संस्थापक मुल्ला बारादर को जेल से रिहा किया था।
अगर अफगानिस्तान में तालिबान की जड़ें मजबूत होती हैं तो वहां की सरकार को हटाने के लिए पाकिस्तान तालिबान को सैन्य साजो-सामान मुहैया करा सकता है। क्योंकि, अफगानिस्तान की वर्तमान सरकार के साथ पाकिस्तान के संबंध सही नहीं है।
भारत की अफगानिस्तान में चल रही इन परियोजनाओं को खतरा
भारत 116 सामुदायिक विकास परियोजनाओं पर काम कर रहा है, जिन्हें अफगानिस्तान के 31 प्रांतों में क्रियान्वित किया जाएगा। इनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, सिंचाई, पेयजल, नवीकरणीय ऊर्जा, खेल अवसंरचना और प्रशासनिक अवसंरचना के क्षेत्र शामिल हैं। भारत काबुल के लिए शहतूत बांध और पेयजल परियोजना पर भी काम कर रहा है।
अफगान शरणार्थियों के पुनर्वास को प्रोत्साहित करने के लिए भी नानगरहर प्रांत में कम लागत से घरों के निर्माण का काम भी प्रस्तावित है। बामयान प्रांत में बंद-ए-अमीर तक सड़क संपर्क, परवान प्रांत में चारिकार शहर के लिए जलापूर्ति तंत्र और मजार-ए-शरीफ में पॉलीटेक्नीक के निर्माण में भी भारत सहयोग दे रहा है। वहीं कंधार में अफगान राष्ट्रीय कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की स्थापना में भारत सहयोगी है।