चुनावी रणनीतिकार से कैसे विशुद्ध राजनेता बन गए प्रशांत किशोर


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अबकी बार मोदी सरकार' और 'बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है' जैसे नारे गढ़ने वाले प्रशांत किशोर पिछले छह साल में राष्ट्रीय राजनीति में अपनी सशक्त पहचान बना चुके हैं। पीके नाम से प्रसिद्ध प्रशांत किशोर की मदद से अब तक कई राजनीतिक दल सत्ता की सीढ़ी चढ़ चुके हैं।

2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने इनकी बनाई नीति अपनाकर ही सत्ता शिखर हासिल किया था। इसके बाद पीके ने बिहार में जनता दल यूनाइटेड को अपनी सेवाएं दीं। नीतीश कुमार, लालू प्रसाद और कांग्रेस को मिलाकर सरकार की राह बनाई। बदले में जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए गए। फिर जदयू में खटपट बढ़ी तो पीके ने नीतीश से अपनी राह अलग कर ली।


18 फरवरी को पटना में आयोजित प्रेसवार्ता में प्रशांत किशोर ने कहा है कि डेढ़ वर्ष पहले उन्होंने जदयू से अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की थी। बकौल पीके उन्होंने देखा कि बिहार में बदलाव तो हो रहा है, लेकिन इसके आगे क्या होना चाहिए, यह कोई नहीं जानता है। ऐसे ही कई विषयों पर सोचने के बाद उन्होंने तय किया कि अब सारथी बनने से काम नहीं चलेगा। जितने भी वर्ष लगें बिहार को बदलने के लिए वो तैयार हैं।

प्रशांत किशोर ने इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमिटी (IPAC) नाम से एक चुनावी रणनीति संगठन बना रखा है। आइए जानते हैं पीके के बारे में सबकुछ-



  • साल 1977 में प्रशांत किशोर का जन्म बिहार के बक्सर जिले में हुआ था। उनकी मां उत्तर प्रदेश के बलिया जिले की हैं वहीं पिता बिहार सरकार में डॉक्टर हैं। उनकी पत्नी का नाम जाह्नवी दास है। जो असम के गुवाहाटी की एक डॉक्टर हैं।

  • प्रशांत किशोर और जाह्नवी का एक बेटा है। राजनीतिक करियर की बात करें तो 2014 में मोदी सरकार को सत्ता में लाने की वजह से वह चर्चा में आए थे। उन्हें एक बेहतरीन चुनावी रणनीतिकार के तौर पर जाना जाता है। हमेशा से वह पर्दे के पीछे रहकर अपनी चुनावी रणनीति को अंजाम देते आए हैं। इसी वजह से उन्हें सबसे ज्यादा भरोसेमंद माना जाता है।

  • 34 साल की उम्र में अफ्रीका से संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की नौकरी छोड़कर किशोर 2011 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की टीम से जुड़े थे। जिससे राजनीति में ब्रांडिंग का दौर शुरू हो गया। चुनाव में नेता का ऐसा प्रचार शायद ही किसी दौर में देखा गया था।

  • साल 2014 में किशोर ने सिटीजन फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस की स्थापना की थी। जिसे भारत की पहली राजनीतिक एक्शन कमिटी माना जाता है। यह एक एनजीओ है जिसमें आईआईटी और आईआईएम में पढ़ने वाले युवा प्रोफेशनल्स शामिल थे।

  • किशोर को मोदी की उन्नत मार्केटिंग और विज्ञापन अभियान जैसे कि चाय पे चर्चा, 3डी रैली, रन फॉर यूनिटी, मंथन का श्रेय दिया जाता है। वह इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (आई-पैक) नाम का संगठन चलाते हैं। यह लीडरशिप, सियासी रणनीति, मैसेज कैंपेन और भाषणों की ब्रांडिंग करता है।

  • 2014 में भाजपा का साथ छोड़ने के बाद प्रशांत किशोर ने 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव के लिए नीतीश कुमार- लालू यादव के महागठबंधन का साथ थामा था। इसके बाद 2017 में वह वाईएसआर कांग्रेस से जुड़ गए।


  • 18 फरवरी को पटना में आयोजित प्रेसवार्ता में प्रशांत किशोर ने कहा है कि डेढ़ वर्ष पहले उन्होंने जदयू से अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की थी। बकौल पीके उन्होंने देखा कि बिहार में बदलाव तो हो रहा है, लेकिन इसके आगे क्या होना चाहिए, यह कोई नहीं जानता है। ऐसे ही कई विषयों पर सोचने के बाद उन्होंने तय किया कि अब सारथी बनने से काम नहीं चलेगा। जितने भी वर्ष लगें बिहार को बदलने के लिए वो तैयार हैं।

    प्रशांत किशोर ने इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमिटी (IPAC) नाम से एक चुनावी रणनीति संगठन बना रखा है। आइए जानते हैं पीके के बारे में सबकुछ-



    • साल 1977 में प्रशांत किशोर का जन्म बिहार के बक्सर जिले में हुआ था। उनकी मां उत्तर प्रदेश के बलिया जिले की हैं वहीं पिता बिहार सरकार में डॉक्टर हैं। उनकी पत्नी का नाम जाह्नवी दास है। जो असम के गुवाहाटी की एक डॉक्टर हैं।

    • प्रशांत किशोर और जाह्नवी का एक बेटा है। राजनीतिक करियर की बात करें तो 2014 में मोदी सरकार को सत्ता में लाने की वजह से वह चर्चा में आए थे। उन्हें एक बेहतरीन चुनावी रणनीतिकार के तौर पर जाना जाता है। हमेशा से वह पर्दे के पीछे रहकर अपनी चुनावी रणनीति को अंजाम देते आए हैं। इसी वजह से उन्हें सबसे ज्यादा भरोसेमंद माना जाता है।

    • 34 साल की उम्र में अफ्रीका से संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की नौकरी छोड़कर किशोर 2011 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की टीम से जुड़े थे। जिससे राजनीति में ब्रांडिंग का दौर शुरू हो गया। चुनाव में नेता का ऐसा प्रचार शायद ही किसी दौर में देखा गया था।

    • साल 2014 में किशोर ने सिटीजन फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस की स्थापना की थी। जिसे भारत की पहली राजनीतिक एक्शन कमिटी माना जाता है। यह एक एनजीओ है जिसमें आईआईटी और आईआईएम में पढ़ने वाले युवा प्रोफेशनल्स शामिल थे।

    • किशोर को मोदी की उन्नत मार्केटिंग और विज्ञापन अभियान जैसे कि चाय पे चर्चा, 3डी रैली, रन फॉर यूनिटी, मंथन का श्रेय दिया जाता है। वह इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (आई-पैक) नाम का संगठन चलाते हैं। यह लीडरशिप, सियासी रणनीति, मैसेज कैंपेन और भाषणों की ब्रांडिंग करता है।

    • 2014 में भाजपा का साथ छोड़ने के बाद प्रशांत किशोर ने 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव के लिए नीतीश कुमार- लालू यादव के महागठबंधन का साथ थामा था। इसके बाद 2017 में वह वाईएसआर कांग्रेस से जुड़ गए।



    'बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है'




    • नीतीश कुमार के जनसंपर्क अभियान 'हर-घर दस्तक' और 'बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है' जैसे लोकप्रिय नारे के पीछे किशोर ही थे। कहा जाता है कि बिहार में धुर विरोधी जेडीयू-आरजेडी-कांग्रेस का महागठबंधन बनवाने में उनकी अहम भूमिका रही।  

    • पार्टी के प्रमुख जगन मोहन रेड्डी ने किशोर की मुलाकात पार्टी के बड़े नेताओं से करवाई थी। हालांकि बिहार में जिस रणनीति ने काम किया था वह आंध्र प्रदेश में कामयाबी हासिल नहीं कर पाई।

    • उन्होंने उत्तर प्रदेश चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर काम किया था लेकिन यहां भी पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा। कुछ दिनों पहले ही किशोर की संस्था आईपैक का लोकसभा चुनाव को लेकर एक सर्वे सामने आया था।

    • इस सर्वे के अनुसार 48 प्रतिशत लोगों ने पीएम मोदी को अपना नेता माना था। वहीं कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी 11 प्रतिशत के साथ दूसरे स्थान पर रहे थे। इन आंकड़ों ने भाजपा को कांग्रेस पर हमला करने का एक मौका दे दिया था। यह सर्वे किशोर से जुड़ी सिटीजंस फॉर एकाउंटेबल गवर्नेंस की ओर से 2013 में कराए गए सर्वेक्षण के समान था। जिसमें मोदी को देश का सबसे पसंदीदा नेता बताया गया था।