ग्लोबल थिंक टैंक की इस पर क्या सोच है? राष्ट्रपति ट्रंप ने भी भारत दौरे को लेकर


राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का बहुप्रचारित भारत दौरा अमेरिका में चुनाव वाले वर्ष में हो रहा है. भारत-अमेरिकी राजनीति के अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों के मुताबिक ट्रंप को इस दौरे से भारतीय अमेरिकी वोटरों में कुछ पैठ बनाने में मदद मिल सकती है. भारतीय अमेरिकी वोटरों को पारंपरिक तौर पर ट्रंप के विरोधी डेमोक्रेट्स का समर्थक माना जाता है.


हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के थिंक टैंक्स के मुताबिक आर्थिक मंदी की मार, नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के चौतरफा विरोध के बीच ट्रंप का ये भारत दौरा हो रहा है. ऐसे में मोदी सरकार के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति के भारत में 36 घंटे भावनात्मक रूप से राहत वाले हैं.


ट्रंप के भारत दौरे के मायने


हार्वर्ड बिजनेस स्कूल (HBS) जोर्ज पॉलो लीमैन प्रोफेसर तरुण खन्ना ने कहा, 'देखिए हम जानते हैं कि डोनाल्ड ट्रंप लेन-देन वाले राष्ट्रपति हैं. ट्रंप की फौरी जरूरत लेन-देन वाले लाभ हासिल करना है. निश्चित तौर पर इनमें से एक मकसद भारतीय अमेरिकी आबादी से संपर्क बढ़ाना है. इस वर्ग की निश्चित रूप से अहमियत बढ़ रही है अगर ये देखा जाए कि चुनावी तंत्र इस साल किस तरह काम करेगा.'


ब्राउन यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल स्टडीज और सोशल साइंसेज में सोल गोल्डमैन प्रोफेसर आशुतोष वार्ष्णेय भी इससे सहमति जताते हैं.


वार्ष्णेय कहते हैं, 'हां, ये अमेरिकी राजनीति के स्कॉलर्स, वाचर्स और ऑब्सर्वर्स को साफ होता जा रहा है कि चाहे भारतीय अमेरिकी समुदाय छोटा है, करीब एक प्रतिशत, लेकिन कुछ राज्यों में ये बहुत अहम है.'


आशुतोष वार्ष्णेय ने ऐसे राज्यों में टेक्सास, मिशिगन, फ्लोरिडा और पेन्नसिल्वानिया के नाम लिए जहां अमेरिकी चुनाव में ट्रंप की संभावनाओं पर असर डाल सकते हैं.


टेक्सास अमेरिका का दूसरा सबसे बड़ा राज्य है जहां अमेरिकी इलेक्टोरल कॉलेज की 38 सीटें हैं. वार्ष्णेय आगे साफ करते हैं, टेक्साल अब रिपब्लिकन का मजबूत गढ़ नहीं रहा है. टेक्सास में करीब चार लाख भारतीय हैं, इनमें से 3 लाख के वोट करने की संभावना है. और ये असल में टेक्सास में स्विंग से पासा पलट सकते हैं.'


वार्ष्णेय के मुताबिक पिछले चुनाव में पेन्निसिल्वानिया, फ्लोरिडा और मिशिगन में ट्रंप की जीत का अंतर एक प्रतिशत या उससे कम, या एक प्रतिशत से कुछ ही ज्यादा था. इसलिए खासतौर पर इन चार राज्यों में भारतीय अमेरिकी अंतर ला सकते हैं.


ट्रंप के 'अहम' की उड़ान


MIT में राजनीति विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर विपिन नारंग ट्रंप के भारत दौरे को उनके 'अभिमान' की पूर्ति करने वाला बताते हैं.


नारंग कहते हैं, 'मैं समझता हूं कि राष्ट्रपति ट्रंप के लिए ये उनके अहम की कवायद है. मैं मानता हूं कि ट्रंप भीड़ में अपनी तारीफ (चाहे झूठी ही सी) के विचार को बहुत प्यार करते हैं.'


नारंग आगे कहते हैं, 'ये भारतीय अमेरिकियों को स्विंग करने की कोशिश है, जिनका बहुत उदार और डेमोक्रेटिक होने का इतिहास रहा है. उन्हें रिपब्लिकन्स की तरफ खींचने का ये प्रयास है. अगर बहुत ही बुनियादी स्तर पर कहा जाए तो ये उनके लिए भारतीय भीड़ की ओर से प्यार किए जाने का एक मौका है.'


भावनाओं को उठाना


भारतीय और अमेरिकी बाजारों को ट्रैक करने वाली अग्रणी फंड मैनेजर पुनीता कुमार-सिन्हा कहती हैं, अमेरिकी राष्ट्रपति का अहमदाबाद, आगरा और दिल्ली जाना, भारत को लेकर अंतरराष्ट्रीय कारोबारी भावनाओं को प्रोत्साहन दे सकता है क्योंकि इस दक्षिण एशियाई देश को CAA विरोधी प्रदर्शनों और आर्थिक मंदी ने घेर रखा है.


पुनीता कुमार-सिन्हा के मुताबिक 'राष्ट्रपति ट्रंप का भारत दौरा अमेरिकियों से ज्यादा उनके भारतीय समकक्षों के लिए फायदेमंद है. मैं समझती हूं कि भारत में फिलहाल की स्थिति में कुछ फीलगुड भावनाओं की आवश्यकता है.'


ऐसे में जब विदेशी पूंजी का आना आक्रामक नहीं है, ट्रंप के दौरे से भारत में निवेश के माहौल को लेकर सकारात्मक संदेश जाता है.


पैसिफिक पैरेडिम एडवाइजर्स में मैनेजिंग पार्टनर पुनीता कुमार-सिन्हा कहती हैं- 'एक तरह से भारत में अमेरिकी राष्ट्रपति की मौजूदगी इस बात पर मुहर लगाती है कि अमेरिका निवेश समेत कई मोर्चों पर भारत को गंभीर पार्टनर के तौर पर देख रहा है. इसलिए विदेशी निवेशक, खासतौर पर अमेरिका स्थित विदेशी निवेशक, जो CAA और आर्थिक विकास को लेकर थोड़े चिंतित थे, वो इस दौरे को सकारात्मक कदम के तौर पर लेंगे और मानेंगे कि चीजें इतनी बुरी भी नहीं हैं.'


हालांकि इस दौरे में कोई बड़ा व्यापारिक समझौता होने की संभावना नहीं है लेकिन पुनीता कुमार-सिन्हा आशावान हैं कि 'ये अगली व्यापार वार्ताओं की दिशा में उठाया गया एक कदम है.'


पुनीता कुमार-सिन्हा कहती हैं, 'भारत के पास वो आर्थिक जगह हासिल करने का मौका है जिसे चीन को कोरोना वायरस के फैलने से खोने का खतरा है.  मेरा मानना है कि ये और ज़्यादा अहम है भारत के लिए कि उसे चीन के वैकल्पिक स्रोत के तौर पर देखा जाए. इस कोरोना वायरस ने एक देश के साथ कारोबार करने के खतरे को सामने ला दिया है.'



प्रतिस्पर्धात्मक संरक्षणवाद


तरुण खन्ना और नारंग मानते हैं कि दोनों तरफ का संरक्षणवाद व्यापार विमर्श को रोक रहा है. खन्ना कहते हैं, 'आम तौर पर दोनों देश बहुत संरक्षणवादी हैं. ये दोनों देशों के लिए अच्छा है कि वो इन कुछ अच्छी प्रतीकात्मक यात्राओं का व्यापार बाधाओं को तोड़ने में इस्तेमाल करें.'


विपिन नारंग समझौते के लिए झुकने को व्यापार वार्ताओं के लिए बहुत अहम बताते हैं. नारंग कहते हैं, 'खिंचाव (भारत और अमेरिका के बीच) के कारण असली हैं. मैं मानता हूं कि दोनों देशों का व्यापार पर रणनीतिक मुद्दों को लेकर सख्त रवैया थोड़ा निराशाजनक है. जबकि बड़े रिश्ते की खातिर ये रवैया आगे बढ़ने वाला होना चाहिए. सच्चाई ये है कि दोनों पक्षों का संरक्षणवादी ज़मीन को मजबूती से पकड़े रखना थोड़ा निराश करने वाला है.'


अमेरिकी राजनीति के पर्यवेक्षक भी आशंका जताते हैं कि मोदी सरकार के ट्रंप प्रशासन के साथ रिश्तों को अधिकतर पक्षपाती माना जाने लगा है.


क्या होगा अगर ट्रंप सत्ता से हटे तो


विशेषज्ञों के मुताबिक अब जबकि सीनेटर बर्नी सैंडर्स डेमोक्रेटिक फ्रंटरनर के तौर पर तेजी से उभर रहे हैं, ऐसे में इस साल के अमेरिकी चुनाव में वाशिंगटन डीसी में नेतृत्व परिवर्तन होने की स्थिति में भारत-अमेरिका रिश्तों पर बुरा असर पड़ सकता है.


विपिन नारंग कहते हैं, 'डेमोक्रेट्स में चिंता है, मिसाल के तौर पर बीजेपी खुले तौर पर ट्रंप का साथ देती है, यहां तक कि ह्यूस्टन में ‘हाउडी मोदी!’ कार्यक्रम में अगले कार्यकाल के लिए भी मुहर लगा देती है और डेमोक्रेट्स को खारिज कर देती है- भारत सरकार के अधिकारी जब वाशिंगटन डीसी आते हैं तो डेमोक्रेट्स से मिलते भी नहीं. तो ऐसे में ये खतरा है. बर्नी सैंडर्स रफ्तार पकड़ते नजर आ रहे हैं.'


आशुतोष वार्ष्णेय भी ऐसे ही विचार जताते हैं और साथ ही आगाह करते हैं कि डेमोक्रेट्स अगर जीतते हैं तो वो अमेरिका की भारत नीति के केंद्र में जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे की बहाली और CAA जैसे मुद्दों को ला सकते हैं.


आशुतोष वार्ष्णेय कहते हैं- 'आमतौर पर ये सच है कि डेमोक्रेट्स जब सत्ता में आते हैं तो कूटनीतिक विमर्श और सार्वजनिक बातचीत में मानवाधिकार मुद्दे ज्यादा अहम हो जाते हैं. इसमें कोई संदेह नहीं हैं. अगर बर्नी सैंडर्स जीतते हैं (फिलहाल ऐसी स्थिति में कोई अनुमान नहीं लगा सकता) तो कश्मीर और CAA भारत-अमेरिका रिश्तों में बहुत अहम हो जाएंगे.'