राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि खुलापन हिंदुओं की पहचान है, जिसकी रक्षा की जानी चाहिए। भागवत के मुताबिक हिंदुओं के जागरण की आवश्यकता है, लेकिन यह किसी के खिलाफ नहीं होना चाहिए। हिंदुओं को प्रतिक्रियावादी नहीं होना चाहिए। संघ प्रमुख ने दिल्ली के छतरपुर में पूरे देश के 70 स्तंभकारों के साथ संवाद किया। यह बंद दरवाजे के भीतर हुई बैठक थी।
भागवत की कोशिश संघ के प्रति लोगों के मन में व्याप्त कतिपय भ्रांतियों को दूर करने की थी। बैठक में मौजूद रहे कई स्तंभकारों ने यह विचार व्यक्त किया कि तमाम विषयों पर यह संवाद अर्थपूर्ण और फलदायी रहा। एक स्तंभकार के मुताबिक, संघ प्रमुख ने खुलेपन संबंधी हिंदू समुदाय की विशेषता पर जोर दिया। भागवत ने कहा, हम किसी का वर्गीकरण नहीं करते। किसी पर हमें कोई संदेह नहीं है।
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और इसके खिलाफ चल रहे विरोध प्रदर्शनों पर भागवत ने कहा कि किसी भी कानून को नापसंद किया जा सकता है और उसमें बदलाव की मांग की जा सकती है, लेकिन इसके नाम पर न तो बसें जलाई जा सकती हैं और न ही सार्वजनिक संपत्ति को बर्बाद किया जा सकता है। भागवत ने कहा, बसों को जलाना लोकतंत्र नहीं है। अब वही लोग भारत का झंडा लहरा रहे हैं, संविधान की बात कर रहे हैं। भारत माता की जय के नारे लगा रहे हैं। तो कौन बदल रहा है? कौन जीत रहा है? भागवत ने गत वर्ष देश में काम कर रहे विदेशी मीडिया संगठनों के प्रतिनिधियों से बात की थी।