केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की स्मार्ट पालिटिक्स ,अपनी छवि झोंकी बचाई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि
महज एक नतीजे से राजनीति में किसी की किस्मत तय नहीं होती है। भारतीय जनता पार्टी के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय, आर्थिक मामलों पर पकड़ रखने वाले गोपालकृष्ण अग्रवाल और दिल्ली के प्रभारी, केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर की टीम के सदस्यों को एक्जिट पोल के बाद से ही यह उम्मीद थी कि चुनाव नतीजे उनके लिए सम्मानजनक रहेंगे।
कुल मिलाकर दिल्ली विधानसभा चुनाव का पूरा माहौल आम आदमी के पक्ष में और एक तरफा बनता जा रहा था। बताते हैं ऐसी स्थिति में पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष ने पूरे होमवर्क के साथ कुछ बड़े फैसले लिए। उनके इस निर्णय को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का पूरा समर्थन था।
तीन महीने में नहीं खड़ा हो सकता प्रचार अभियान
- भाजपा नेता अमित मालवीय भी मानते हैं कि दिल्ली में प्रचार अभियान तीन महीने के भीतर नहीं खड़ा हो सकता था, लेकिन भाजपा ने न केवल चुनाव अभियान खड़ा कर दिया, बल्कि मुख्य लड़ाई में आ गई।
- कांग्रेस पार्टी ने तो भाजपा को रोकने के लिए अपनी राजनीतिक आत्महत्या कर ली। उसके नेता दिल्ली में प्रचार करने की बजाय जयपुर में युवा आक्रोश रैली कर रहे थे।
- असल में भाजपा 22 जनवरी के बाद प्रचार अभियान में उतरी है। जब देश गणतंत्र दिवस मना रहा था। तब केंद्रीय गृहमंत्री और पूर्व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह चुनाव की रणनीति को अंतिम रूप देने में व्यस्त थे।
- यही वजह रही कि अमित शाह को न तो 26 जनवरी की शाम को राष्ट्रपति भवन में रिसेप्शन में देखा गया और न ही 29 जनवरी को बीटिंग रिट्रीट समारोह में।
- 31 जनवरी तक आते-आते भाजपा के पूर्व अध्यक्ष ने पार्टी को आम आदमी पार्टी के मुकाबले में लाकर खड़ा कर दिया।
शाह ने झोंकी अपनी छवि!
अमित शाह को राजनीति में 'चाणक्य' की संज्ञा दी जाती है। 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश चुनाव अभियान के प्रभारी शाह ने 72 सीटों का नतीजा देकर इतिहास रच दिया था। भाजपा के कुछ बड़े नेता भी मानते हैं कि प्रधानमंत्री को देश का सबसे लोकप्रिय राजनेता बनाने में अमित शाह का भी बड़ा योगदान है। कांग्रेस पार्टी के एक पूर्व नेता का कहना है कि अमित शाह ने महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड का चुनाव परिणाम देखने के बाद अपनी रणनीति में थोड़ा बदलाव किया है।
दिल्ली के विधानसभा चुनाव में उन्होंने जनता के मन के साथ-साथ पार्टी के हित का भी खास ख्याल रखा। दिल्ली में चुनाव प्रचार अभियान का केंद्र वही बन गए। कड़ी मेहनत की और गलियों में पर्चे तक बांटे। 63 के करीब जनसभाएं की और प्रधानमंत्री की छवि को आगे रखकर पीएम को दिल्ली के प्रचार से काफी दूर रखा। ताकि भाजपा यदि चुनाव हारे तो इसके लिए शाह को जिम्मेदार ठहराया जाए और भाजपा जीते तो प्रधानमंत्री के साथ-साथ अमित शाह को बधाई दी जाए।पीएम की केवल दो रैलियों के पीछे ये है वजह
प्रशांत किशोर की टीम में रहकर आंध्र प्रदेश में जगनमोहन रेड्डी के चुनाव अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सूत्र का कहना है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों का अंदाजा अमित शाह को पहले से रहा होगा। वह काफी होमवर्क करते हैं। इसलिए विधानसभा के चुनाव प्रचार में उन्होंने प्रधानमंत्री को चुनाव प्रचार में ज्यादा न उतारकर उनकी छवि को बचाया है।
पीएम को दिल्ली चुनाव में प्रतिष्ठा का प्रश्न नहीं बनने दिया, क्योंकि आगे अभी भाजपा को प्रधानमंत्री के छवि की काफी जरूरत पड़ेगी। इतना ही नहीं दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री को छोड़कर भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी। ताकि लोगों को इसका भी अंदाजा रहे कि भाजपा की नैय्या केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बल पर ही पार लग सकती है।
बताते हैं भाजपा के निशाने पर केजरीवाल से ज्यादा अभी राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा हैं। भाजपा को पता है कि उसे इन दोनों छवियों से काफी लोहा लेना है। सूत्र का कहना है कि इनमें भी सबसे ज्यादा बड़ी चुनौती प्रियंका गांधी वाड्रा दे सकती हैं। केजरीवाल और उनकी पार्टी तो बस दिल्ली तक सीमित है।