प्रसव के नए तरीके से आसान हुआ प्रसव, एक से दो घंटे घटा पीड़ा का समय


पुरानी तकनीक के बजाए नई तकनीक ने प्र्रसव प्रक्रिया को आसान कर दिया है। नई तकनीक ने प्रसव पीड़ा के समय में एक से दो घंटे कमी ला दी है। इस तकनीक पर पीजीआईएमएस रोहतक अमल कर रहा है। संस्थान में इस तकनीक पर स्त्री एवं प्रसूति विभाग की प्रोफेसर डॉ. वाणी मल्होत्रा ने 100 महिलाओं पर शोध किया और कामयाबी मिलने पर विभाग अब यह तकनीक अपना रहा हैै। ‘कंपेरजिन ऑफ द मेटरनल एंड फिटल आउटकम इन इंडक्शन ऑफ लेबर बाई सबलिंगवल एंड वेजिनल मिसोप्रोस्टोल’ शोध के लिए डॉ. वाणी को हाल ही में लखनऊ में आयोजित एआईसीओजी 2020 कार्यक्रम में द्वितीय पुरस्कार भी मिला है। इसमें देश विदेश से आए स्त्री रोग विशेषज्ञों ने अपने शोध प्रस्तुत किए थे।


 शोध में बताया कि गर्भवती महिला की प्रसव पीड़ा के समय को कम करने के साथ-साथ नई तकनीक सुरक्षित भी है। नई तकनीक में गर्भवती महिलाओं को प्रसव से पहले मिसोप्रोस्टोल दवा जीभ के नीचे रखवाई गई और उनके सामान्य प्रसव के दौरान होने वाले आठ से 12 घंटे की प्रसव पीड़ा में एक से दो घंटे में कमी आई, जबकि पुरानी तकनीक में यह दवा गुप्तांग में डॉक्टर द्वारा रखी जाती थी। इसमें जच्चा-बच्चा को संक्रमण से बचाने के लिए खासा ध्यान रखना होता था। वहीं जीभ के नीचे दवा रखने का लाभ यह मिला कि प्रसव के दौरान दर्द में तेजी आई और प्रसव जल्दी होने में कामयाबी मिली। इसका लाभ जच्चा-बच्चा और प्रसव कराने वाली टीम को भी मिला। डॉ. वाणी मल्होत्रा की इस उपलब्धि पर संस्थान के कुलपति डॉ. ओपी कालरा, कुलसचिव डॉ. एचके अग्रवाल, निदेशक डॉ. रोहतास कंवर यादव व स्त्री एवं प्रसूति विभागाध्यक्ष डॉ. स्मिति नंदा ने खुशी जताई है। वहीं संस्थान के जनसंपर्क अधिकारी एवं फार्मेसी कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. गजेंद्र ने बताया कि डॉ. वाणी को अवार्ड सर्टिफिकेट और नकद राशि के साथ फोगसी डॉ. अमरेंद्र नाथ डॉन बेस्ट पेपर मातृत्व और शिशु केयर कैटेगरी में दिया गया। डॉ. वाणी ने नई तकनीक को संस्थान में शुरू किया और इसी तकनीक से अब यहां सामान्य प्रसव कराए जा रहे हैं। गौरतलब है कि पीजीआईएमएस का स्त्री एवं प्रसूति विभाग प्रदेश का हाईफ्लो सेंटर है। यहां एक दिन में 30 से 35 प्रसव होते हैं और 1000 प्रसव प्रक्रिया हर माह होती है।