रुला देगी इनकी कहानी जो 'भीड़ के पागलपन' की भेंट चढ़ गए,




क्या वो दंगाई थे या फिर सीएए के विरोधी या समर्थक? सड़क को आग का दरिया बनाने का काम क्या इन्होंने ही किया था? क्या सच में उन्हें सीएए से कुछ लेना देना भी था? शायद नहीं!

24 और 25 फरवरी को दिल्ली ने 'पागलपन' देखा और चारों तरफ फैली नफरत की आग में 42 लोग हमेशा के लिए अपनों से जुदा हो गए। हर कोई यह जानना चाहता है कि आखिर ये लोग कौन थे? अभी तक 30 की पहचान हो पाई है। बाकियों के अपनों की निगाहें तो अभी भी उन्हें ढूंढने में लगी हुई हैं। 

ये 30 लोग वो हैं, जो दोनों ओर से सुलगी नफरत की आग में बिना किसी कसूर के जलकर खाक हो गए। कोई मजदूरी कर अपने परिवार का पेट पालता था, तो कोई पढ़-लिखकर बड़ा अफसर बनने के सपने संजोए हुए था। कोई दिनभर नौकरी कर अपने बच्चों के पास लौट रहा था। 


  • मुशर्रफ : पेशे से ड्राइवर बदायूं के 35 वर्षीय मुशर्रफ का शव नाले से बरामद हुआ। कर्दमपुरी में पत्नी और तीन बच्चों के साथ रहता था। मुशर्रफ की पत्नी मल्लिका के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे।

  • महरूफ अली : बिजली के सामान की दुकान करने वाले महरूफ के सिर में गोली लगी। 

  • मुबारक अली : पेशे से पेंटर 35 साल के मुबारक अली दंगे वाले दिन भजनपुरा में काम के बाद घर के लिए रवाना हुए, लेकिन घर नहीं पहुंचे। तीन दिन तक अपने तलाशते रहे और बाद में दुखद सूचना मिली। मुबारक अली की दो बेटियां और एक बेटा है। 

  • आलोक तिवारी : 24 साल का आलोक तिवारी यूपी के हरदोई का रहने वाला था। गत्ते की फैक्टरी में काम करने वाला आलोक पत्नी और दो बच्चों के साथ करावल नगर में रहता था। तलाश में जुटे बड़े भाई को जीटीबी अस्पताल में उसका शव मिला। बड़े भाई को अभी भी यह विश्वास नहीं हो रहा है कि इतनी कम उम्र में उसका छोटा भाई दुनिया से चला गया.