वैज्ञानिकों को जल्द का कोरोना वायरस टीका बनाने की उम्मीद




वैश्विक महामारी घोषित हो चुके कोरोना वायरस के कारण अब तक दुनिया में 18605 लोगों की मौत हो चुकी है। भारत की बात करें तो इस बीमारी ने 11 लोगों की जान ले ली है। वहीं इस वायरस के जेनेटिक कोड पर शोध करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि यह अपना रूप नहीं बदल रहा है। जो शोधकर्ताओं के लिए अच्छी खबर है क्योंकि उन्हें उम्मीद है कि इससे वह लंबे समय तक चलने वाला टीका बना सकते हैं।
 

सभी वायरस समय के साथ विकसित होते हैं। वे एक होस्ट सेल के अंदर रहकर खुद को बढ़ाते हैं और फिर जनसंख्या के जरिए आस-पास फैलते जाते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान कुछ अपने प्राकृतिक रूप में ही रहते हैं जबकि कुछ अपना स्वरूप बदल लेते हैं। हालांकि कोरोना वायरस अपना रूप नहीं बदल रहा है, जिसके कारण त्रुटि दर कम हो जाती है। यह हर जगह एक जैसा ही है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस बात का कोई सबूत नहीं मिला है कि एक वायरस दूसरे से ज्यादा खतरनाक है। 




सार्स-कोव-2 वायरस के कारण कोविड-19 बीमारी होती है। यह कोरोना वायरस के जैसा है जो प्राकृतिक रूप से चमगादड़ों में पाया जाता है। यह पिछले साल चीन के वुहान में मनुष्यों के अंदर आया था। माना जा रहा है कि यह वायरस मध्यवर्ती प्रजाति- संभवत: पेंगोलिन के जरिए फैला है, जिसकी तस्करी पारंपरिक दवा बनाने के लिए की जाती है।




वैज्ञानिक अब वायरस के 1,000 विभिन्न नमूनों का अध्ययन कर रहे हैं। जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी में मॉल्यूकल जेनेटिस्ट पीटर थीलन वायरस का अध्ययन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिका में संक्रमित लोगों और वुहान में फैलने वाले मूल वायरस के बीच केवल चार से 10 आनुवंशिक अंतर हैं।

थीलन ने कहा, 'बड़ी संख्या में लोगों को अपनी चपेट में लेने के बावजूद इस वायरस में बहुत कम अनुवांशिक अंतर आया है। ऐसे में उम्मीद है कि सार्स-कोव-2 के लिए एक ही टीका बनाया जा सकता है, जबकि फ्लू के लिए हर साल नया टीका बनाना पड़ता है। यह खसरे या चिकनपॉक्स के टीकों की तरह होगा। कुछ ऐसा जो लंबे समय तक रोग-प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाएगा।'