जमातियों की गलती से देश में कोरोना की लड़ाई खिंच सकती है लंबी


निजामुद्दीन मरकज से निकल कर तब्लीगी जमात के लोग क्या अपनी आदतों से देश में नकारात्मक माहौल तैयार रहे हैं, यह सवाल लोगों के जेहन में घूमने लगा है। डॉक्टर, नर्स या पेरामेडिकल स्टाफ के साथ तब्लीगी जमात का बुरा सलूक कोरोना की लड़ाई को कमजोर बना रहा है। जानकारों का यह भी कहना है कि निजामुद्दीन मरकज की घटना से भारत में कोरोना की लड़ाई लंबी खिंच सकती है। 


इन सबके बीच दिल्ली की फतेहपुरी मस्जिद के शाही इमाम डॉ. मुफ्ती मुकर्रम का कहना है कि ये जो कुछ हुआ या हो रहा है, वह पूरी तरह गलत है, मगर इसके पीछे कोई षडयंत्र- साजिश है, ऐसा नहीं लगता। ये तब्लीगी जमात की लापरवाही का नतीजा है। इनका परिवेश ऐसा है, जिसमें ये इतना भी नहीं समझ पा रहे कि डॉक्टर, नर्स या कोरोना की लड़ाई में जुटा कोई और, वो हमारा शुभचिंतक है, जो अपनी जान जोखिम में डालकर हमारी जान बचा रहा है, वह सम्मान के योग्य है।

जमातियों की गलती लेकिन समय रहते सरकार ने बाहर क्यों न निकालाः मदनी
निजामुद्दीन मरकज की घटना के बाद देश में तब्लीगी समाज को लेकर उग्र प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। आम धारणा बनी है कि तब्लीगी जमात ने इस कठिन समय में सरकार की मदद करने की बजाए उसकी मुसीबत बढ़ा दी है। वे खुद सामने आकर न तो कोरोना का टेस्ट करा रहे हैं और न ही ये जानकारी देते हैं कि वे मरकज में कितने दिन रहे और अभी तक उनके संपर्क में कौन आया है। जिला प्रशासन बड़ी मुश्किल से उन्हें तलाश कर क्वारंटीन सेंटर पहुंचा रहा है। वहां पर डॉक्टरों और नर्सों के साथ अभद्रता के मामले सामने आते हैं। 

केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा है, तब्लीगी समाज का मकसद जहालत फैलाना है। मुस्लिम संगठन जमीयत उलमा-ए-हिन्द के महासचिव मौलाना महमूद मदनी कहते हैं, कोरोना से लड़ाई के वक्त अगर कोई भी व्यक्ति डॉक्टर या नर्स से गलत व्यवहार करता है तो वह निंदनीय है। लेकिन साथ ही वह यह भी पूछते हैं, सरकार ने समय रहते मरकज से लोगों को बाहर क्यों नहीं निकाला। कहीं न कहीं कमियां तो सरकार की भी हैं।

एकतरफा निगाह से देखा तो निष्पक्ष नतीजे पर नहीं पहुंचेंगेः मुफ्ती मुकर्रम
फतेहपुरी मस्जिद के शाही इमाम डॉ. मुफ्ती मुकर्रम कहते हैं, इन लोगों को जानकारी बहुत कम होती है। इन्हें प्रोटीन विटामिन का ज्ञान तक नहीं है। 80 सालों से मरकज की गतिविधियां चल रही हैं। एक नहीं, बहुत से मुल्कों में जमात के लोगों का आना जाना लगा रहता है। ये पूरी तरह से गैर राजनीतिक होते हैं। अगर ये मस्जिद में चले जाएं और वहां पर पंखा बंद है तो ये उसे चलाने के लिए किसी को नहीं कहते। खुद भी नहीं चलाते, ये सोचकर कि इसका इस्तेमाल कोई और कर लेगा। 

जनवरी में कोरोना को सब जान गए थे। फरवरी में यह आगे बढ़ता चला गया। मार्च आ गया और प्रधानमंत्री जी ने एक दिन के कर्फ्यू की घोषणा कर दी। उसके बाद सरकार को यह ख्याल आ रहा है कि मरकज में तो जमाती भरे हैं। देखिए, एकतरफा निगाह से इस मामले को देखेंगे तो किसी निष्पक्ष नतीजे पर नहीं पहुंचेंगे। चीन की हालत तो सभी को पता थी। उस वक्त स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन कहते रहे कि हम सक्षम हैं, हमारे यहां वैसी स्थिति नहीं होगी।

षडयंत्र नहीं, अपढ़ता, सोच, लापरवाही
खैर जो भी हो, लेकिन इतना तय है कि जमाती किसी षडयंत्र के चलते ये सब नहीं कर रहे हैं। उनकी सोच, परिवेश और अपढ़ता जैसी स्थिति ये सब करा रही है। ये इनकी लापरवाही है। डॉ. मुफ्ती मुकर्रम साथ ही यह भी कहते हैं कि अब जो डॉक्टरों या नर्सों के साथ अभद्रता करने की बात सामने आ रही है, वह पूरी तरह असहनीय है। कोरोना से मानव के जीवन पर ही संकट आ खड़ा हुआ है, उस दौरान अगर कोई जमाती ऐसी हरकत करता है तो उसे माफ नहीं किया जा सकता। 

डॉक्टर और उनके साथी जान पर खेलकर काम कर रहे हैं। ये सम्मानीय हैं। हमें इनका सहयोग करना चाहिए। अगर मुस्लिम समुदाय के लोगों को यह संदेह होता है कि उनमें कोरोना जैसे लक्षण हैं तो वे खुद ही बाहर आएं। अस्पताल जाकर अपना इलाज कराएं। कोई किसी को जबरन 14 दिन के लिए क्वारंटीन में नहीं भेजता। हमें मेडिकल टीमों और अपने सुरक्षा बलों के पीछे मजबूती से खड़ा होना चाहिए।