मरीजों को दोबारा संक्रमण होने से डॉक्टर से लेकर वैज्ञानिक हैरान


देशभर में बढ़ते कोरोना संक्रमण के बीच डॉक्टरों की मेहनत और मजबूत इच्छाशक्ति के जरिए वायरस को लोग मात भी दे रहे हैं। हालांकि ठीक हो चुके मरीजों को दोबारा संक्रमण होने से डॉक्टर से लेकर वैज्ञानिक हैरान हैं। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास मेडिकल ब्रांच के वायरोलॉजिस्ट डॉ. विनीत मेनाचेरी बताते हैं कि संक्रमण होते ही शरीर बचाव की प्रक्रिया शुरू कर देता है। वायरस को मारने और संक्रमण को दूर करने के लिए संक्रमण के सात से दस दिन के भीतर शरीर में एंटीबॉडीज बन जाती हैं। वे कहते हैं कि बीमारी ठीक होने के बाद रिपोर्ट पॉजिटिव आने का अर्थ है कि निगेटिव रिपोर्ट गलत थी।


ऐसा कई कारणों से हो सकता है
यूनिवर्सिटी ऑफ हांगकांग के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विशेषज्ञ प्रो. डेविड हुई बताते हैं कि ठीक हो चुके मरीज में दोबारा वायरस की पुष्टि से जांच प्रक्रिया पर सवाल उठता है। ठीक होने के बाद शरीर में वायरल आरएनए की मौजूदगी से भी ऐसा हो सकता है लेकिन इसकी मात्रा बहुत कम होती है जिसके चलते बीमारी दोबारा नहीं हो सकती है।


जो जितना युवा, उसमें उतनी शक्तिशाली एंटीबॉडीज
डॉ. विनीत मेनाचेरी का अनुमान है कि कोरोना संक्रमण के बाद शरीर में बनी एंटीबॉडीज उसके सिस्टम में दो से तीन साल तक रह सकती है। हालांकि ये अलग-अलग रोगी और उसकी शारीरिक क्षमता पर भी निर्भर करती है। वे बताते हैं कि जो जितना युवा होगा उसका शरीर और शक्तिशाली एंटीबॉडीज बनाएगा।


एंटीबॉडीज से प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है
विशेषज्ञ कहते हैं कि आपके शरीर में एंटीबॉडीज हैं तो वायरस न्यूट्रलाइज हो जाएगा और आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होगी। हां ये बात जरूर है कि शरीर में एंटीबॉडीज कब तक रहेंगी, ये अभी भी सवालों के घेरे में हैं।


स्वस्थ होने पर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है
कोरोना से ठीक होने के बाद रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है इस पर अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। चीन के एक शोधकर्ताओं ने पाया कि कोरोना संक्रमित बंदर ठीक होने के बाद भी दोबारा संक्रमित हो गए।


15 फीसदी मरीज दोबारा हुए बीमार
चीन के उत्तरी शहर शेनजेन में कोरोना से ठीक हो चुके 262 लोगों पर अध्ययन किया गया। इसमें 38 लोगों में दोबारा वायरस की पुष्टि हुई यानि 15 फीसदी रोगी अस्पताल से छुट्टी पाने के बाद भी संक्रमित पाए गए। ये जांच अत्याधुनिक पॉलीमीरेज चेन रिएक्शन के जरिए हुई थी। शोध में शामिल 38 मरीज युवा थे जिनकी उम्र 14 से कम थी। इनमें संक्रमण के दौरान हल्के लक्षण दिखाई दिए थे। दूसरी बार संक्रमण की पुष्टि हुई तो आमतौर पर मरीजों में लक्षण नहीं थे।