2,000 करोड़ रुपये का कृषि फंड, अबतक खर्च हुए सिर्फ 10.45 करोड़ रुपये,मोदी सरकार ने 2 साल पहले बजट में दिया था


किसानों की उपज का बेहतर मूल्य दिलाने के लिए मोदी सरकार ने 2018-19 के बजट में 2,000 करोड़ रुपये के फंड से आधुनिक कृषि बाजार और संरचना कोष की स्‍थापना करने की घोषणा की थी, लेकिन आपको जानकर ताज्जुब होगा कि इस फंड में से दो साल में केवल 10.45 रुपये ही खर्च हो पाए हैं। इस योजना के तहत नए विकसित बाजारों को ग्रामीण कृषि बाजार या GRAMS का नाम दिया जाना था।


इसका मकसद 22,000 ग्रामीण एग्रीकल्‍चर मार्केट और 585 एपीएमसी में एग्रीकल्‍चर मार्केटिंग इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर का वि‍कास करना था। इसके तहत 22,000 रूरल हाट को एग्रीकल्‍चर मार्केट के रूप में बदलने और इन्‍हें इलेक्‍ट्रॉनि‍क तरीके से ई नैम से जोड़ने की कवायद की गई ताकि इसकी बदौलत छोटे कि‍सान भी अपनी उपज सीधे कंज्‍यूमर या व्‍यापारी को बेच सकें। बता दें नए बाजारों की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यहां कृषि उपज मंडी समितियों (APMC) के नियंत्रण से मुक्त है। 


हिन्दुस्तान टाइम्स की खबर के मुताबिक करीब दो साल में इस 2,000 करोड़ के फंड से केवल 0.5% राशि का ही उपयोग हो पाया। आवंटित 10.45 करोड़ रुपये को प्रस्तावित 22,000 बाजारों में से 376 को विकसित करने पर खर्च की गई है। हालांकि, अभी इन बाजारों में कोई भी सुविधा अभी उपयोग के लिए तैयार नहीं है।


विशेषज्ञों के मुताबिक कृषि उपज के लिए आधुनिक बाजार और मार्केटिंग में एक और सुधार की कोशिश समस्याओं में घिर गई है। तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्री केएस मणि कहते हैं,' कृषि विपणन में सुधार के प्रयास पहले भी असफल रहे हैं और वे संतोषजनक परिणाम देने में विफल रहे हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है मॉडल कृषि उपज बाजार समिति अधिनियम 2003, जिसे सभी राज्यों द्वारा सार्वभौमिक रूप से नहीं अपनाया गया। दरअसल व्यापारियों और कमीशन एजेंटों के साथ-साथ स्थानीय रूप से प्रभावशाली लोगों का अक्सर मंडियों पर कड़ा नियंत्रण रहता है।'


बता दें भारत में कृषि उपज का विपणन एक जटिल प्रणाली है, जिसमें संगठित और असंगठित बाजारों का मिश्रण है। किसान अपनी उपज को मुख्य रूप से मंडियों में बेचते हैं। इन मंडियों को कृषि उपज विपणन समितियों या एपीएमसी संचालित करती हैं। 16 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों में लगभग 585 ऐसे उच्च विनियमित एपीएमसी हैं।V