2009 में हुई थी बाघों को फिर से बसाने की शुरुआत पन्ना टाइगर रिजर्व में ; आज 55 बाघों से गुलजार


 पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघ पुर्नस्थापना योजना के एक दशक नवंबर 2019 को पूरे हो चुके हैं। असल में नवंबर महीने में ही पेंच टाइगर रिजर्व से टी-3 नर बाघ को पन्ना लाया गया था, जिसने बाघ विहीन हो चुके पन्ना टाइगर रिजर्व को फिर से गुलजार कर दिया। वर्तमान में टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या 55 (गणना के अनुसार) तक पहुंच गई है। वैसे कहा जा रहा है कि इस समय बाघों की संख्या 70 तक पहुंच चुकी है जिनमें अधिकांश नर बाघ टी-3 की संतान हैं। 


ये है पन्ना में बाघों को बसाने की कहानी 
पन्ना टाइगर रिजर्व में वर्ष 2009 में बाघों की संख्या शून्य हो गई थी, तत्कालीन फील्ड डायरेक्टर आर श्रीनिवास मूर्ति ने बाघ पुनर्स्थापना की योजना बनाई और उसे क्रियान्वित करते हुए कान्हा टाइगर रिजर्व से एक बाघिन बांधवगढ़ से हेलीकॉप्टर द्वारा लाई गई। बाघ टी-3 के वापस टाइगर रिजर्व में लौटने के बाद इतिहास बदलने वाला था। वर्ष 2010 में बाघिन टी-1 ने अप्रैल में और टी-2 ने अक्टूबर में शावकों को जन्म दिया। अब रिजर्व में बाघ की संख्या 8 हो गई थी। टी-1 ने पहली बार 16 अप्रैल को शावकों को जन्म दिया था। यह दिन आज भी पन्ना टाइगर रिजर्व में जोर-शोर से मनाया जाता है। इसके बाद वन विभाग द्वारा 5 वर्षीय बाघों का एक जोड़ा भी कान्हा राष्ट्रीय उद्यान से यहां लाया गया। 


ऐसा उदाहरण दुनिया में कहीं नहीं मिलता है 


साल 2013 में भी पेंच से एक बाघिन को पन्ना स्थानांतरित किया गया। अनुमानत: पन्ना में अब तक 70 बाघ हो चुके हैं, जिनमें से कुछ विंध्य और चित्रकूट क्षेत्र के जंगलों में भी पहुंच चुके हैं। अब पन्ना टाइगर पार्क रिजर्व में 55 बाघ हैं। पन्ना टाइगर रिजर्व के वर्तमान निदेशक केएस भदौरिया का दावा है कि बाघों के पुर्नस्थापना में इतनी बड़ी सफलता दुनिया में किसी देश में देखने को नहीं मिलती है। एक बफर फॉरेस्ट ज़ोन में बाघों का प्रजनन एक बेहद श्रमसाध्य कार्य है, जिसमें हर कदम पर जोखिम शामिल है। यह पन्ना में भी नहीं था। 


जब बाघ टी-3 को ढूंढना था मुश्किल
तत्कालीन फील्ड डायरेक्टर आर श्रीनिवास मूर्ति ने बताया, "बाघ पुर्नस्थापना बहुत ही दुष्कर कार्य था। हमें कदम-कदम पर असफलताएं भी मिलीं पर हमने हार नहीं मानी। एक के बाद एक प्रयोग करते रहे। स्थानीय लोगों को भी जागरूक करते रहे। जो परिणाम आये, वो आज विश्व के सामने हैं। बाघ टी-3 को दूसरी बार ढूंढना निहायत ही मुश्किल काम था। उसको पहनाए गये वीएचएफ कॉलर से कोई सिग्नल नहीं मिल रहे थे। हमारे स्टॉफ के लोग न केवल चारों दिशाओं में दौड़े, बल्कि 24 घंटे सतर्क रहे। कई उपाय आजमाने के बाद अंततोगत्वा हमने एक ट्रिक अपनाई। हमने बाघिन का मूत्र क्षेत्र के पेड़ों पर छिड़कवाया, जिससे आकर्षित होकर टी-3 हमें वापस मिला। प्राकृतिक रूप से बाघ इस गंध के सहारे ही बाघिन तक पहुँचता है।" 


1994 में मिला था टाइगर रिजर्व का दर्जा 
पन्ना के जंगलों में बाघ हुआ करते थे, इस वजह से साल 1994 में टाइगर रिजर्व का दर्जा भी मिला था। फिर एक समय ऐसा भी आया, जब साल 2009 में इस टाइगर रिजर्व में एक भी बाघ नहीं बचा। वन्य-प्राणी विशेषज्ञ और पन्ना के नागरिक यह स्थिति देख आश्चर्य चकित रह गए। टाइगर रिजर्व के वर्तमान निदेशक केएस भदौरिया ने बताया कि मार्च-2009 में बांधवगढ़ और कान्हा टाइगर रिजर्व से 2 बाघिन को पन्ना लाया गया। इन्हें टी-1 और टी-2 नाम दिया गया। इसके बाद 6 दिसम्बर को पेंच टाइगर रिजर्व से बाघ लाया गया, जिसका नामकरण टी-3 किया गया। इस बाघ का पन्ना टाइगर रिजर्व में मन नहीं लगा और वह वापस दक्षिण दिशा की ओर चल पड़ा। हर वक्त सतर्क पार्क प्रबंधन ने 19 दिन तक बड़ी कठिनाई और मशक्कत से इसका लगातार पीछा किया और 25 दिसम्बर को इसे बेहोश कर पुन: पार्क में ले आए।


जन समर्थन से बाघ संरक्षण का नारा 
पन्ना बाघ पुर्नस्थापना योजना की कामयाबी के 10 साल नवंबर में ही पूरे हुए हैं। बाघ टी-3 के सम्मान में पन्ना में कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। इस मौके पर पन्ना बाघ पुर्नस्थापना में अपना योगदान देने वाले हर किसी अधिकारी, कर्मचारी, फ्रेंड्स ऑफ पन्ना के सदस्यों को सम्मानित और पुरस्कृत किया गया। तत्कालीन फील्ड डायरेक्टर आर श्रीनिवास मूर्ति ने बताया कि पन्ना में बाघ पुर्नरस्थापना योजना को शानदार कामयाबी इसलिए भी मिली कि पन्ना वासियों ने अपने खोए गौरव को फिर से हासिल करने के लिए हर तरह की कुर्बानी भी दी। जैसे पन्ना में आज तक किसी भी प्रकार की कोई भी औद्योगिक कारखाना नहीं लगाया गया। 


स्टेपिंग स्टोन्स फॉर टाइगर
बाघों की बढ़ती आबादी को बचाने के लिये मध्य प्रदेश में स्टेपिंग स्टोन्स फॉर टाइगर कांसेप्ट पर काम किया जा रहा है। इस योजना में हम धार, बुरहानपुर, हरदा, इंदौर, नरसिंहपुर, सागर, सीहोर, श्योपुर, मण्डला और ओंकारेश्वर में अभयारण्य विकसित कर बाघों के लिये सुरक्षित कॉरिडोर बना रहे हैं। ये अभयारण्य दो जंगलों के बीच ऐसे स्थान पर विकसित किए जाएंगे, जहां हरियाली और गांव नहीं हैं और जैव-विविधता विकास की संभावनाएं हैं। इससे बाघों के लिये क्षेत्र की वृद्धि होने के साथ ही हरियाली बढ़ने से भू-जल स्तर में वृद्धि होगी, इलाका उपजाऊ बनेगा, चारा मिलने से शाकाहारी पशुओं की संख्या बढ़ेगी। बाघों को सुरक्षित कॉरिडोर मिलने से मानव-प्राणी द्वंद भी रुकेगा।