गुड़िया केसःपांच साल की मासूम बच्ची के साथ दुष्कर्म,सजा अब 30 जनवरी को बहस


हमारे समाज में कई उत्सवों के अवसर पर छोटी बच्चियों को मां दुर्गा के रूप में पूजा जाता है, लेकिन इस मामले में पीड़ित बच्ची ने असाधारण नीचता और अत्यधिक क्रूरता का अनुभव किया।’ इस कठोर टिप्पणी के साथ शनिवार को पॉक्सो अदालत ने 2013 में पांच साल की गुड़िया का अपहरण करने के बाद सामूहिक दुष्कर्म करने के दोनों आरोपियों को दोषी घोषित कर दिया। दोनों की सजा पर अब 30 जनवरी को बहस होगी। जानिए किस दरिंदगी से दोषियों ने पांच साल की मासूम बच्ची के साथ दुष्कर्म किया कि उसके 10 ऑपरेशन करने पड़े...


बता दें कि पूरे देश को झकझोर देने वाले निर्भया कांड के महज चार महीने बाद पूर्वी दिल्ली के गांधीनगर इलाके में मासूम गुड़िया भी वैसी ही दरिंदगी का शिकार हुई थी। दोनों आरोपियों ने बंधक बनाकर दुष्कर्म करने के अलावा अमानवीयता की सारी हदें पार करते हुए पांच साल की मासूम के निजी अंगों में मोमबत्तियां और कांच की बोतल डालकर ऐसी क्रूरता दिखाई थी कि उसकी जान बचाने के लिए डॉक्टरों को 10 बार ऑपरेशन करने पड़े। 


अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश नरेश कुमार मल्होत्रा के समक्ष दोनों आरोपियों मनोज कुमार शाह और प्रदीप को पेश किया गया। अदालत ने अपना फैसला सुनाने से पहले कहा कि इस वारदात के दौरान पीड़ित बच्ची के साथ सबसे असंगत और घिनौना व्यवहार किया गया, जिसके बारे में पता लगने पर पूरे समाज की अंतरात्मा हिल गई थी। जज ने कहा कि बच्ची के लिए यह घटना बेहद पीड़ादायक और भयानक रही। कोर्ट बच्ची के साथ हैवानियत करने वाले दोनों आरोपियों को बच्ची के अपहरण और दुष्कर्म के लिए दोषी ठहराती है।


दो दिन तक बंधक बनाकर किया था दुष्कर्म
मनोज और प्रदीप ने 15 अप्रैल 2013 को पांच वर्षीय बच्ची को उसके घर के पास खेलते हुए फुसलाकर अगवा कर लिया था। मनोज के कमरे में दोनों ने उससे करीब दो दिन तक कई बार दुष्कर्म किया। बाद में निर्भया कांड की तर्ज पर ही उसके निजी अंगों में मोमबत्तियां और कांच की बोतल डालकर  फरार हो गए। गायब होने के करीब 40 घंटे बाद बाहर से ताला लगे मनोज के कमरे से आवाज आती सुनकर तोड़ने पर बच्ची बेहद नाजुक हालत में मिली थी। बाद में पुलिस ने दोनों आरोपियों को बिहार के मुजफ्फरपुर व दरभंगा में उनके रिश्तेदारों के यहां से गिरफ्तार किया था।


इन आरोपों में माना दोषी
अदालत ने दोनों आरोपियों को आईपीसी की धाराओं के तहत नाबालिग से दुष्कर्म, अप्राकृतिक कृत्य, अपहरण, हत्या का प्रयास, सबूतों से छेड़छाड़ और गलत इरादे से बंधक बनाने का दोषी माना है। साथ ही उन्हें पॉक्सो एक्ट के तहत गंभीर यौन हमले का भी दोषी माना है, जिसके लिए अधिकतम उम्रकैद की सजा का प्रावधान है।

छह साल, सात जज, 57 गवाह
एकतरफ जहां ट्रायल कोर्ट ने 2012 के निर्भया कांड में महज 10 महीने बाद 2013 में ही दोषियों को फांसी की सजा सुना दी थी, वहीं मासूम गुड़िया को निचली अदालत से न्याय मिलने में ही छह साल लग गए। इस दौरान सात जजों ने सुनवाई की और अभियोजन ने 57 गवाहों को पेश किया। आरोपियों की गवाही में ही अदालत को 5 दिसंबर, 2018 से 25 सितंबर, 2019 तक करीब एक साल का समय लगा।




आरोपी ने खेला था नाबालिग कार्ड
2014 में एक आरोपी प्रदीप कुमार ने खुद को नाबालिग बताते हुए अदालत से बचाव की अपील की। ट्रायल कोर्ट ने उसकी याचिका पर विचार करने में 3 साल लगा दिए। प्रदीप की याचिका अप्रैल, 2017 को जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड को स्थानांतरित की गई, जहां से उसे जून, 2017 में जमानत मिली गई। पीड़िता की मां ने इसके खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में अपील की। हाईकोर्ट ने 2018 में प्रदीप के नाबालिग नहीं होने का फैसला दिया और सत्र न्यायालय को ट्रायल शुरू करने के आदेश दिए।

कोर्ट से बाहर आते हुए दोषी ने मीडिया कर्मियों पर किया हमला
दोषी ठहराए जाने के बाद जेल जा रहे दोनों आरोपियों ने कोर्ट परिसर में ही पुलिस हिरासत के बावजूद अपनी वीडियो बनाते मीडिया कर्मियों पर हमला करके फोन छीनने की कोशिश की और उन्हें गालियां दीं। दोषियों ने एक महिला पत्रकार का हाथ पकड़कर उसे धक्का भी दिया।

पिता ने कहा, आखिर हमें न्याय मिला
पीड़िता के पिता ने कहा, ट्रायल को 2 साल में ही पूरा हो जाना चाहिए था। फिर भी हम खुश हैं कि छह साल बाद ही सही हमें न्याय मिला। फैसले की सभी वकीलों और सामाजिक संगठनों ने भी प्रशंसा की है।