अमेरिका ने तालिबान के साथ किया आंशिक संघर्षविराम, बढ़ सकती हैं भारत की


अमेरिका और तालिबान के बीच संघर्ष पर विराम लगने के साथ ही अफगानिस्तान में शांति की उम्मीद की जा रही है। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने ट्वीट कर कहा है कि लंबे समय के बाद तालिबान के साथ बात बन गई है। इससे अफगानिस्तान में हिंसा रुक सकेगी। उन्होंने यह भी कहा कि अफगानिस्तान में हिंसा रोकने के लिए एक समझौते पर अमेरिका 29 फरवरी को हस्ताक्षर करने की तैयारी कर रहा है।


वार्ता सफल होने पर बढ़ सकती हैं भारत की मुश्किलें


अमेरिका और तालिबान के बीच शांति वार्ता के सफल होने से भारत की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। भू राजनैतिक रूप से अहम अफगानिस्तान में तालिबान के कदम पसारने से वहां की नवनिर्वाचित सरकार को खतरा होगा और भारत की कई विकास परियोजनाएं प्रभावित होंगी। इसके अलावा भी पश्चिम एशिया में पांव पसारने की तैयारी में लगी मोदी सरकार को बड़ा नुकसान होगा।

22 फरवरी से आंशिक संघर्ष विराम शुरू


अफगानिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा समिति के प्रवक्ता जावेद फैसल ने भी कहा है कि अफगान सुरक्षा बलों और अमेरिका व तालिबान के बीच हिंसा में कमी जल्द ही हो जाएगी। उन्होंने शनिवार 22 फरवरी से हिंसा में कमी आने का दावा करते हुए कहा कि यह कमी एक सप्ताह तक जारी रहेगी। उन्होंने माना कि हिंसा के पूरी तरह खत्म होने में समय लगेगा। आंशिक संघर्ष विराम शनिवार से शुरू होगा।

तालिबान-अमेरिका शांति वार्ता पाकिस्तान के लिए फायदे का सौदा


तालिबान के साथ अमेरिका की शांति वार्ता पाकिस्तान के लिए एक फायदे का सौदा है। इसलिए इन दोनों ध्रुवों के बीच पाकिस्तानी सरकार और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई बिचौलिए का काम कर रही है। अफगानिस्तान से अमेरिकी फौजों के वापस जाते ही पाकिस्तान तालिबान की मदद से कश्मीर में आतंकी घटनाओं को अंजाम दे सकता है।

तालिबान को अमेरिका के साथ बातचीत की मेज पर पाकिस्तान ही लेकर आया क्योंकि वह अपने पड़ोस से अमेरिकी फौजों की जल्द वापसी चाहता है। कतर की राजधानी दोहा में हो रही अमेरिका-तालिबान वार्ता में शामिल होने के लिए पाकिस्तान ने कुछ महीने पहले ही तालिबान के उप संस्थापक मुल्ला बारादर को जेल से रिहा किया था।

अगर अफगानिस्तान में तालिबान की जड़ें मजबूत होती हैं तो वहां की सरकार को हटाने के लिए पाकिस्तान तालिबान को सैन्य साजो-सामान मुहैया करा सकता है। क्योंकि, अफगानिस्तान की वर्तमान सरकार के साथ पाकिस्तान के संबंध सही नहीं है।




भारत पहले ही अफगानिस्तान में अरबों डॉलर के लागत वाले कई मेगा प्रोजेक्ट्स को पूरा कर चुका है और कुछ पर अभी भी काम चल रहा है। भारत ने अब तक अफगानिस्तान को लगभग तीन अरब डॉलर की सहायता दी है जिसके तहत वहां संसद भवन, सड़कों और बांध आदि का निर्माण हुआ है। वहां कई मानवीय व विकासशील परियोजनाओं पर भारत अभी भी काम कर रहा है। इस कारण अफगानिस्तान में भारत की लोकप्रियता खूब बढ़ी है।

भारत 116 सामुदायिक विकास परियोजनाओं पर काम कर रहा है जिन्हें अफगानिस्तान के 31 प्रांतों में क्रियान्वित किया जाएगा। इनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, सिंचाई, पेयजल, नवीकरणीय ऊर्जा, खेल अवसंरचना और प्रशासनिक अवसंरचना के क्षेत्र भी शामिल हैं। भारत काबुल के लिये शहतूत बांध और पेयजल परियोजना पर भी काम कर रहा है।

इसके अलावा अफगान शरणार्थियों के पुनर्वास को प्रोत्साहित करने के लिये नानगरहर प्रांत में कम लागत पर घरों का निर्माण किया जाना प्रस्तावित है। बामयान प्रांत में बंद-ए-अमीर तक सड़क संपर्क, परवान प्रांत में चारिकार शहर के लिये जलापूर्ति नेटवर्क और मजार-ए-शरीफ में पॉलीटेक्नीक के निर्माण में भी भारत सहयोग दे रहा है। कंधार में अफगान राष्ट्रीय कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (ANASTU) की स्थापना के लिये भी भारत सहयोग कर रहा है।


चाबहार परियोजना को खतरा


भारत ने अफगानिस्तान, मध्य एशिया, रूस और यूरोप के देशों से व्यापार और संबंधों को मजबूती देने के लिए ईरान के चाबहार पोर्ट के विकास में भारी निवेश किया है। इससे चीन की वन बेल्ट वन रोड परियोजना के काट के रूप में भी देखा जा रहा है। यदि अफगानिस्तान में तालिबान सत्तासीन होता है तो भारत की यह परियोजना भी खतरे में पड़ सकती है क्योंकि इससे अफगानिस्तान के रास्ते अन्य देशों में भारत की पहुंच बाधित होगी।


गिर सकती है अफगान सरकार


अमेरिका और तालिबान के बीच अगर शांति वार्ता सफल होती तो इससे अफगानिस्तान की मौजूदा सरकार को खतरा होता। शांति वार्ता के सफल होते ही अमेरिका वहां तैनात अपने सैनिकों को वापस बुला लेता जिससे तालिबान की जड़े अफगानिस्तान में और मजबूत होती। वहां अमेरिका के अलावा तालिबान को रोकने वाला कोई ताकत मौजूद नहीं है।

इतना ही नहीं, अमेरिकी फौजों के वापस जाते ही तालिबान अफगान सरकार के खिलाफ युद्ध का ऐलान भी कर सकता है इससे इस देश में गृहयुद्ध का खतरा पैदा हो जाएगा। तालिबान को पाकिस्तान से परोक्ष रूप से मिल रहा सैन्य समर्थन अफगान सरकार के लिए चिंता का विषय है।