अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को विदा करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में हिंसा,आगजनी के हालात पर फोकस किया। बुधवार 26 फरवरी को प्रधानमंत्री के सामने दो बड़ी चुनौती है। पहली अमेरिकी राष्ट्रपति दौरे में मिली सफलता पर मनन। विदेश मंत्रालय इसकी गुणा भाग करने में लगा है। प्रधानमंत्री की दूसरी चुनौती राजधानी दिल्ली में पिछले 72 घंटे के दौरान पैदा हुई शर्मनाक स्थिति की पुनरावृत्ति को रोकना है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल का उन हिंसाग्रस्त इलाकों में जाना स्पष्ट है कि कमान अब पीएमओ ने संभाल ली है।
ट्रंप एक चतुर कारोबारी नेता!
राष्ट्रपति ट्रंप का यह चुनावी साल है। बड़े समझौते की उम्मीद नहीं थी, लेकिन बड़ी घोषणा की आस जरूर थी। कूटनीति के जानकर मान रहे हैं कि राष्ट्रपति ने इस मामले में निराश किया। अमेरिका के लिहाज से वह एक शानदार कूटनीतिक पारी खेलकर गए, लेकिन भारत के हित में उम्मीद के सिवा कुछ खास नहीं आया।
चीन का प्रभुत्व रोकने में भारत का सहयोग लेने, बढ़ाने की कूटनीतिक पारी भी खेल गए। अपनी प्रेस वार्ता में भारत आकर पाकिस्तान और प्रधानमंत्री इमरान खान को अपना दोस्त बताया। वह भारत से पाकिस्तान को संदेश दे गए। विदेश मंत्रालय के एक पूर्व वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि ट्रंप ने एक चतुर कारोबारी नेता की पारी खेली।
दो दिन के दौरे में वह हर कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी की जमकर तारीफ करते रहे। इसी की आड़ में उन्होंने अपने दौरे को सफल बनाने की कोशिश की।
रक्षा क्षेत्र में क्या मिला?
सूत्र का कहना है कि अब भारत को दुनिया का हर देश अपना उत्तम हथियार देना चाहता है। रूस का एस-400 प्रतिरक्षी मिसाइल सिस्टम और इसके जवाब में अमेरिका का नासाम्स मिसाइल सिस्टम देने की पेशकश इसका उदाहरण है। सवाल हाई लेवेल की प्रौद्योगिकी में साझेदारी का है। सैन्य अफसर का कहना है कि भारत अमेरिका की फौज पहले से ही उच्चतरीय सैन्य अभ्यास कर रही हैं। इन सब क्षेत्र में कोई नई घोषणा नहीं हुई है। जो पहले से चल रहा है, वही आगे बढ़ा है। तेल और गैस के क्षेत्र में सहयोग भी संभावित था।
नहीं उठाया भारत की कमजोरी का फायदा
दिल्ली में सांप्रदायिक तनाव और हिंसा पर कोई टिप्पणी नहीं की। कुछ बोलने से बचे। भारत में मुसलमानों के साथ भेदभाव पर कहा कि उन्होंने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी से बात की। ईसाइयों के साथ भेदभाव पर भी बात की। प्रधानमंत्री ने उन्हें बताया कि वह धार्मिक स्वतंत्रता के पक्षधर हैं। इसके लिए प्रतिबद्ध हैं और कड़ी मेहनत कर रहे हैं।
कुल मिलाकर वह भारत के प्रयासों पर संतुष्टि जाहिर करके गए हैं। उन्होंने भारत के रिकॉर्ड, विरासत, संस्कृति की सराहना की है। हालांकि सूत्र का कहना है अब से पहले भारत के आंतरिक मामलों पर इस तरह से शायद ही कभी सवाल उठा हो।
अमेरिका का साथ रहना काफी है
कारोबारी लिहाज से कोई बड़ी घोषणा हो जाती या सहयोग के क्षेत्र में कुछ बड़ी घोषणा होती तो जरूर इसका अलग संदेश जाता। रंजीत का कहना है कि अमेरिका के साथ रहकर हमने काफी कुछ पाया है। परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में सहमति अन्य क्षेत्र में साझा सहयोग से काफी कुछ पहले से मिलता आ रहा है। राष्ट्रपति ट्रंप के दौरे से यह परंरा और मजबूत हुई है।