दंगाइयों ने उसे भी छीन लिया ,जिस बेटे ने दिया बूढ़ी मां को सहारा


दिल्ली दंगों में अब तक 37 लोगों के मारे जाने की खबरें सामने आ चुकी हैं। इन दंगों ने कई परिवारों को अपनों से हमेशा के लिए दूर कर दिया है। इनमें कुछ ऐसे भी हैं, जो अब जिंदगीभर के लिए बेसहारा हो गए हैं। लगभग साठ साल की हो चुकीं कुरेशा के पास कहने के लिए पांच बेटे थे, लेकिन केवल एक ही बेटे मोहम्मद इरफान (30 वर्ष) ने ही उन्हें अपने साथ रखा था।


 

इरफान ही उनकी देखभाल करता था। लेकिन बुधवार को दंगाइयों ने उसे भी कुरेशा से छीन लिया। बूढ़ी मां से अब रोते भी नहीं बन रहा है। पास के मरीजों के रिश्तेदार उनकी देखभाल कर रहे हैं।

कुरेशा ने अमर उजाला को बताया कि उनकी एरिया करतार नगर पुश्ता नंबर चार के पास सोमवार से ही दंगे भड़क गए थे। हालात को देखकर किसी अनहोनी को टालने के लिए सभी लोग घरों में ही कैद थे। जरूरी काम से भी कोई बाहर नहीं जा रहा था। लेकिन बुधवार शाम को बच्चों के लिए दूध खत्म हो गया था।

गली के ही किनारे पर एक दुकान है, जहां से दूध आता था है। गली में उनका परिवार पचास से भी अधिक सालों से रहता आ रहा था। शाम लगभग 07:30 पर मोहम्मद इरफान अपने बच्चों के लिए दूध लेने निकले थे। लेकिन जैसे ही वे अपने घर के किनारे तक पहुंचे, कुछ लोगों ने डंडे लेकर उन्हें घेर लिया और उन पर हमला बोल दिया।

रोती-बिलखती कुरेशा ने बताया कि झगड़े की बात सुनने पर वे लोग बाहर आए, लेकिन कुछ लोगों ने बताया कि कुछ नशेड़ी लोगों ने आपस में झगड़ा कर लिया है। जब तक उन्हें स्थिति समझ में आती तब तक दंगाई उनके बेटे को बुरी तरह घायल कर भाग चुके थे।

वे उन्हें लेकर उस्मानपुर के जगप्रवेश चंद्र अस्पताल ले गए। स्थिति बिगड़ते देख अस्पताल ने उन्हें जीटीबी अस्पताल भेज दिया। गुरु तेग बहादुर अस्पताल जाने पर इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई।

मोहम्मद इरफान के पांच और तीन साल के दो बच्चे हैं। वे स्कूल बैग सिलने के साथ टेलरिंग का काम करते थे। हर महीने दस से बारह हजार रुपये कमाते थे। इसी से उनके परिवार का गुजारा चलता था। लेकिन अब इस पूरे परिवार की जिंदगी के सामने अंधेरा छा गया है। कुरेशा को समझ नहीं आ रहा है कि उनकी बाकी की जिंदगी कैसे गुजरेगी।