चीफ जस्टिस बोबडे कोरोना पर बोले , पत्रकारों के लिए नियमों में छूट नहीं दी जा सकती


चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा, कोरोना वायरस के प्रसार रोकने के लिए अदालतों में भीड़भाड़ कम करने को बनाए गए नियमों में पत्रकारों के लिए छूट नहीं दी जा सकती। चीफ जस्टिस ने पत्रकारों से जानकारी व नोट साझा करने और सेक्रेटरी जनरल द्वारा दैनिक मीडिया ब्रीफिंग को लेकर एक प्रणाली बनाने के सुझाव मांगते हुए कहा, केवल पेशे के कारण पत्रकारों को छूट नहीं दी जा सकती।जस्टिस बोबडे ने सोमवार को कहा, वीडियो कांफ्रेंसिंग की सुविधा फिलहाल लाई गई है, लेकिन इसे एक सप्ताह से ज्यादा लागू नहीं किया जा सकता। पत्रकारों को सुनवाई में हिस्सा लेने को बारी बारी से जाना पड़ सकता है। कोर्ट किसी भी पत्रकार को सुनवाई में हिस्सा लेने से रोकना नहीं चाहती। सुप्रीम कोर्ट में सोमवार से वकीलों, वादियों और पत्रकारों की थर्मल स्क्रीनिंग की जा रही है।इससे पहले, अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल व सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट रूम में प्रवेश पर पाबंदी होने के बाद कॉरिडोर में भीड़ होने की जानकारी दी। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा, वह खुद इसका जायजा लेना चाहते हैं और मंगलवार सुबह 10.30 बजे ऐसा करेंगे। इससे पहले, कोर्ट ने एहतियातन कदम उठाते हुए कोर्ट रूम में केवल वकीलों, वादियों और पत्रकारों के प्रवेश को सीमित कर दिया था। आरएसएस के पूर्व विचारक गोविंदाचार्य ने कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर न्यायालय की कार्यवाही के सीधे प्रसारण के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। वकील विराग गुप्ता के माध्यम से दायर इस आवेदन में अनुरोध किया गया है कि उनकी याचिका पर तत्काल सुनवाई के लिये तारीख निर्धारित की जाए।आवेदन में कहा गया, जजों, वकीलों व वादियों के ज्यादा सार्वजनिक संपर्क को देखते हुए उनमें इस बीमारी के होने का जोखिम ज्यादा है। लिहाजा न्यायिक प्रणाली को तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए। निचली अदालतों में छोटी सी शुरुआत करते हुए विचाराधीन कैदियों की वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये हाजिरी की व्यवस्था की गई है, लिहाजा माननीय न्यायालय भी लाइव स्ट्रीमिंग को अनिवार्य करते हुए नए युग की शुरुआत कर सकता है। इससे पहले, गोविंदाचार्य ने अयोध्या मामले की दैनिक सुनवाई की भी लाइव स्ट्रीमिंग की मांग की थी, लेकिन शीर्ष अदालत ने इसे खारिज कर दिया था।