दिल्ली दंगों में शहीद रतनलाल की पत्नी पूनम को दिल्ली पुलिस मेंसब इंस्पेक्टर की नौकरी


दिल्ली दंगों में शहीद रतनलाल की पत्नी पूनम को दिल्ली पुलिस में दया के आधार पर सब इंस्पेक्टर की नौकरी दी जा सकती है। इसके लिए जिम्मेदार वरिष्ठ अधिकारियों में सहमति बन गई है। इस समय रतनलाल की पत्नी पूनम और उनका परिवार उनकी अंतिम क्रिया के लिए राजस्थान में उनके गांव गया हुआ है।


परिवार के वहां से लौटने के बाद यह प्रक्रिया पूरी की जा सकती है। वहीं शहीद का परिवार रतनलाल की पत्नी पूनम के लिए सेंट्रल गवर्नमेंट या दिल्ली सरकार में अध्यापक पद की नौकरी पाने की इच्छा रखता है। पूनम के पास इससे संबंधित योग्यता भी है।

दिल्ली पुलिस के सूत्रों के मुताबिक शहीद रतनलाल के परिवार के किसी एक व्यक्ति (उनकी पत्नी पूनम) को दया के आधार पर विभाग में ही सब-इंस्पेक्टर के पद पर नियुक्त किए जाने पर विचार किया जा रहा है। दिल्ली पुलिस एक्ट 1978 में लेफ्टिनेंट गवर्नर को दिल्ली का एडमिनिस्ट्रेटर कहा गया है।


इस एक्ट में उन्हें किसी भी व्यक्ति को किसी पद पर नियुक्त करने का अधिकार दिया गया है। परिवार की सहमति बनती है, तो उन्हें जल्दी ही सब-इंस्पेक्टर पद पर तैनात कर दिया जायेगा। 


टीचर बनना चाहती हैं पूनम


शहीद रतनलाल की पत्नी पूनम के चाचा बसंत बारी ने  बताया कि दिल्ली और केंद्र सरकार दोनों ही तरफ से परिवार को सरकारी नौकरी देने का वायदा किया गया है। दिल्ली पुलिस से भी उन्हें नौकरी दिए जाने का प्रस्ताव है। लेकिन पूनम स्नातक हैं और उन्होंने राजस्थान विश्विद्यालय से बी.एड. भी कर रखा है।

परिवार की इच्छा है कि पूनम को केंद्र या दिल्ली सरकार के अंतर्गत शिक्षा विभाग में टीचर के पद पर नियुक्त किया जाए। इसके लिए वे सही समय पर संबंधित अधिकारियों को सूचित भी करेंगे।

रतनलाल के परिवार को दिल्ली सरकार की तरफ से एक करोड़ रुपये की सहायता राशि देने की घोषणा की गई है। केंद्र सरकार ने भी उन्हें एक करोड़ रुपये देना तय किया है। इसके आलावा दिल्ली पुलिस से शुरुआती सहायता के आधार पर उन्हें 62 लाख रुपये दिए जा चुके हैं।  


24 फरवरी को हुए थे शहीद


दिल्ली पुलिस में हेड कांस्टेबल रतनलाल उत्तर-पूर्वी दिल्ली में दंगों के दौरान तैनात थे। दंगे की शुरुआत के दूसरे ही दिन सोमवार 24 फरवरी को वे पत्थरबाजों के निशाने पर आ गये थे।

सिर पर गंभीर चोट लगने के कारण उनकी मौत हो गई थी। पुलिस के इस जाबांज जवान की हत्या की खबर सुनकर भीड़ बहुत ज्यादा उग्र हो गई थी और दंगे दूसरे क्षेत्रों में भी फैल गए थे।