शीर्ष कोर्ट की सलाह, कहा- मुकदमा दायर करने में देरी को विवेकपूर्ण ढंग से माफ करें अदालतें



 सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा, मुकदमा दायर करने में देरी को माफ करने का फैसला विवेकपूर्ण ढंग से किया जाना चाहिए। अगर अदालतें बिना किसी पर्याप्त कारण के मुकदमे दाखिल करने में देरी को माफ करना शुरू कर देंगी तो यह वैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन होगा ओर सीधे तौर पर विधायिका की अवहेलना होगी।

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा, मुकदमेबाजी के लिए समय सीमा तय करने का उद्देश्य सार्वजनिक नीति पर आधारित है, जो सामान्य कल्याण के उद्देश्य के लिए कानूनी उपाय में लगने वाला वक्त तय करता है। समय सीमा का उद्देश्य यह देखना है कि पार्टियां लंबी-चौड़ी रणनीति का सहारा न लें और अपने कानूनी विकल्पों को तत्काल इस्तेमाल करें। ऐसे में मुकदमा दाखिल करने में देरी को माफ करते वक्त विवेकपूर्ण ढंग से फैसला लिया जाना चाहिए। 

पीठ ने कहा कि ऐसा हो सकता है कि समय सीमा किसी वादी के अधिकारों को प्रभावित करे लेकिन कानून द्वारा निर्धारित किये जाने के कारण इसे पूरी कठोरता से लागू किया जाना चाहिए। देश भर की अदालतों में मुकदमा दाखिल करने में देरी के लिए आमतौर पर माफी दी जाती है।