BAPSA की लखनऊ विश्वविद्यालय इकाई का गठन किया



BAPSA  बहुजन समाज और कमजोर पृष्ठभूमि से आने वाले छात्र- छात्राओं का संगठन है । इसका गठन जेएनयू दिल्ली में 2014 में वंचित समाज से जुड़े छात्रों द्वारा हुआ था। आज यह संगठन एक दर्जन से अधिक विश्वविद्यालयों में विशेषकर बहुजन समाज के विद्यार्थियों के हित में काम कर रहा है। इसी मकसद से मजदूर, किसान, दलित, आदिवासी, पिछड़े और अल्पसंख्यक समाज से आने वाले विद्यार्थियों द्वारा आज बाप्सा की लखनऊ विश्वविद्यालय इकाई का गठन किया जा रहा है। बाप्सा लखनऊ विश्वविद्यालय में बहुजन समाज के पुराने विद्यार्थियों और प्रवेश लेने वाले नए छात्र-छात्राओं को समय समय पर शैक्षणिक-सामाजिक सहयोग प्रदान करेगा ।


बाबासाहेब आंबेडकर, ज्योतिबा फूले, बिरसा मुंडा, सावित्रीबाई फूले और फातिमा शेख आदि बहुजन नायक -नायिकाओं के विचारों के उन्नयन के लिए और विश्वविद्यालय में बेहतर और सौहार्दपूर्ण शैक्षणिक माहौल प्रदान करने में अपनी भूमिका निभाएगा। पुस्तकालय के समय से खुलने से लेकर पुस्तकों की उपलब्धता, समयानुसार कक्षाएं होने तथा स्वच्छ टॉयलेट और स्वच्छ पानी की माँग के लिए संगठन कृत संकल्प है। पिछले कुछ सालों से बहुजन समाज के विद्यार्थी जीरो फीस और छात्रवृत्ति की समस्या का सामना कर रहे हैं। बाप्सा इस मुद्दे पर मुखर होकर लोकतांत्रिक तरीके इन सुविधाओं की बहाली के लिए संघर्ष करेगा। 



 बाप्सा की लखनऊ विश्वविद्यालय इकाई का गठन किया जा रहा है। कार्यकारिणी में अध्यक्ष मानव रावत, उपाध्यक्ष (2) आदित्य वर्धन और अब्दुल रऊफ, महासचिव अंकित कुमार, संयुक्त सचिव (3) विनय चौधरी, सुधीर कुमार, आशुतोष वर्मा तथा सचिव (5) सूजा-उर- रहमान, लावण्या रावत, संघमित्रा, पूनम, राहुल कुमार और 20 अन्य सदस्य होंगे।

 स्थापना दिवस पर आयोजित संगोष्ठी 'बहुजन समाज और विश्वविद्यालय' की अध्यक्षता करते हुए प्रो. रूपरेखा वर्मा जी ने कहा कि बाबा साहेब अंबेडकर और सावित्रीबाई फुले आदि ने वंचित समाज की तरक्की के लिए शिक्षा को सबसे जरूरी उपाय बताया है। लड़कियों और दलित पिछड़ों की सामाजिक और आर्थिक आजादी का रास्ता विश्वविद्यालयों से होकर ही जाता है। मुख्य वक्ता प्रो. रमेश दीक्षित ने जेएनयू में छात्र संगठन, उसके संविधान और अनूठे आरक्षण की व्यवस्था से जुड़े अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि जेएनयू में बहुत कम फीस पर पढ़ाई लिखाई और रहने खाने की बेहतरीन व्यवस्था के कारण के मिले अवसरों के कारण वंचित समाज के हजारों छात्र छात्राओं ने बड़ी बड़ी उपलब्धियाँ हासिल की हैं। लेकिन आज विश्वविद्यालयों से दलित वंचित तबके की प्रतिभाओं के साथ अन्याय हो रहा है। रोहित बेमुला ने ऐसी ही वजहों से आत्महत्या की थी। मुख्य अतिथि पूर्व आइएएस श्री हरिश्चंद्र ने कहा कि विश्वविद्यालयों में ऐसे छात्र संगठन जरूरी हैं जो बहुजन समाज के हितों का संरक्षण कर सकें। आए दिन दलित आदिवासी समाज के छात्र छात्राओं के साथ होने वाले अन्याय की खबरें आती हैं। ऊँची फीस लगाई जा रही है। बजीफा भी धीरे धीरे खत्म किया जा रहा है। आरक्षण का ठीक से पालन नहीं हो रहा है। ऐसे में बाप्सा का गठन उचित कदम है। तस्वीर नकवी ने विशेषकर लड़कियों की शिक्षा की बात करते हुए कहा कि डिग्रियों के साथ साथ प्रगतिशील मूल्यों को भी जीवन में उतारना जरूरी है। पीजीआई के डा. बसंत कुमार ने मेडिकल कॉलेजों में भी ऐसे छात्र संगठनों की जरूरत बताई। केजीएमयू के डा. हरिराम ने कहा कि संस्थानों में दलितों पिछड़ों के संगठनों के जरिए ही अपने अधिकारों की रक्षा की जा सकती है। कानपुर विश्वविद्यालय के डा. अमरेंद्र गोंड ने खासकर आदिवासी विद्यार्थियों को शिक्षा देने और संगठन में शामिल करने की जरूरत पर बल दिया। लखनऊ विश्वविद्यालय के डा. विनीत वर्मा, डा. राजेंद्र वर्मा, डा. प्रतिभा सरोज, डा. रविकान्त और सचिवालय के अर्जुन देव भारती, भीम आर्मी के आदित्य भारती, अचूक संघर्ष के संपादक मौर्या ने भी अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर सैकड़ों छात्र छात्राएं और शहर के बुद्धिजीवी, सोशल एक्टिविस्ट, पत्रकार, छात्र नेता आदि उपस्थित थे।