भजन करने वाला या नहीं करने वाला दोनों की मृत्यु सुनिश्चित है। लेकिन जब हम पुराणों का दर्शन करते हैं तो वहां हमें पता चलता है कि भजन करने वाले को कभी भी नरक का दर्शन नहीं होता है। अर्थात नरक से मुक्ति मिल जाती है। भगत को ले जाने के लिए भगवान के दूत आते हैं ना कि यमदूत।
ममता चैरिटेबल ट्रस्ट के तत्वावधान में सी एम एस विद्यालय के मैदान में आयोजित नौ दिवसीय श्रीराम कथा के सातवें दिन पूज्य महाराज श्री ने व्यासपीठ से कथा वाचन करते हुए उक्त बातें कहीं।
श्री रामकथा के माध्यम से भारतीय और पूरी दुनिया के सनातन समाज में अलख जगाने के लिए सुप्रसिद्ध कथावाचक प्रेमभूषण जी महाराज ने कहा कि हमारे लिए यह भी जानना आवश्यक है कि हम किनका भजन करें। जिस किसी का भजन भी नहीं करना है। आजकल भूत प्रेत पिशाच जोगिनी हाथ की पूजा कर भी परंपरा चल पड़ी है जो बहुत ही घातक स्थिति है। अघोर पंथ की पूजा पद्धति में जाने वाले का एक अंग खराब होना सुनिश्चित होता है।
महाराज श्री ने कहा कि अगर आपको यह पता नहीं है कि हमें किनका भजन करना चाहिए तो सीधे ओम नमः शिवाय का भजन करें। क्या जापान तथा आपको यह बता देगा या वह रास्ता दिखा देगा कि आपको किन का भजन करना चाहिए। अगर आप वैष्णव हैं तो राम जी कृष्ण जी का, शैव हैं तो शिवजी का और शाक्त हैं तो मां भगवती की उपासना करें। यह भी ध्यान रखना है कि देवताओं का पूजन केवल सांसारिक वस्तुओं की प्राप्ति के लिए करना होता है जबकि भगवान का भजन परमार्थ यात्रा को सुनिश्चित करने के लिए होता है।
वो दूसरे ने कहा कि रामचरितमानस में मनुष्य के जीवन जीने के लिए कई उपयुक्त और बहुत ही सटीक सिद्धांत निर्धारित किए गए हैं। विभिन्न 10 लोगों के माध्यम से पूज्यश्री ने बताया जो भी अपने जीवन का कल्याण, कीर्ति, यश , सुख समृद्धि आदि की चाहत रहती रखता है उसे अपने जीवन में पर स्त्री के ललाट का कभी भी दर्शन नहीं करना चाहिए अर्थात हमारी संस्कृति हमेशा से मात्र संस्कृति रही है और हम पर स्त्री को मातृ भाव से ही देखते आ रहे हैं।
हमारे शास्त्रों का एक सरल सिद्धांत दिया है भी है कि आदमी को उत्सव कार्य चुड़कर भी भोजन करना चाहिए हजार कार्य छोड़कर के लिए स्नान करना चाहिए और एक लाख कारे छोड़कर भी दान करना चाहिए। चाहे वह तान थोड़ा ही हो लेकिन यह सभी कुछ छोड़ कर के भगवान का भजन करना चाहिए।
महाराज श्री के मीडिया प्रभारी तारकेश्वर मिश्र जी ने बताया कि आगामी 25 दिसंबर को कथा की पूर्णाहुति पर भंडारे का आयोजन किया जाएगा। सप्तम दिवस की कथा की समाप्ति पर भव्य आरती का आयोजन किया गया जिसे नैमिषारण्य से आए सुनीत पाण्डेय और विशेष पंडितों के समूह ने बड़े भव्य तरीके से संपन्न किया।
भगवान श्रीराम की वन यात्रा प्रसंगों का श्रवण करने के लिय बड़ी संख्या में विशिष्ट जन उपस्थित रहे। हजारों की संख्या में उपस्थित श्रोतागण को महाराज जी के द्वारा गाए गए दर्जनों भजनों पर झूमते हुए देखा गया